#कीर्ति जायसवालप्रयागराज(इलाहाबाद)
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(भाग- २)…..
‘मछ्ली’ आज फिर से उड़ना चाह रही है;
‘मछली’ आज फिर से चलना चाह रही है।
चाहत पहले भी उड़ने की; है चाहत पर उड़ने की;
चाहत सपना है बन बैठा; सच बस खोना है।
चमक उठी है आँखें कब से; सपनों से भरी पड़ी;
उन सपनो को पूर्ण करूँ; वह चाह रही है कब से।
उम्मीदों से भरी पड़ी है; सपनों से वह भरी पड़ी है;
सपना तो सपना बन बैठा; सच बस खोना है।
सच है सपनो में खोना; सच है अपना हक खोना;
सच है हर पल त्याग करे; त्याग का फल भी खो बैठे।
‘मछली’ आज फिर से उड़ना चाह रही है;
‘मछली’ आज फिर से चलना चाह रही है।
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