जीवन के कुछ पन्नों पर कुछ लकीरें बन जाती हैं कुछ टेढ़ी-मेढी कुछ ऊबड़-खाबड़ मिटती बनती लकीरें आती-जाती रहती हैं लकीरें हिचकोले खाती हुई लकीरें फिर भी हौसला अफजाई करती ये लकीरें चुपचाप चलती हैं जीवन की गति की निरंतरता में। #आराधना राय” बलियावी” बलिया ,उत्तर प्रदेश Post Views: 480