हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए कृतसंकल्प एक संस्थान

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radha goyal
हिंदी भाषा के गौरव की स्थापना और भारत में हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए कृत संकल्प मातृभाषा डॉट कॉम ने बहुत प्रशंसनीय कार्य किये। उसमें हिंदी के नवोदित और स्थापित रचनाकारों की रचनाओं को प्रकाशित कर पाठकों तक पहुँचाने का कार्य किया गया। मुझ समेत अनेक रचनाकार जुड़ चुके हैं।यह यात्रा यहीं नहीं रुकी। हिंदी ग्राम का निर्माण किया गया। रोज ही किसी ने किसी साहित्यकार का जन्मदिन, पुण्यतिथि और उस साहित्यकार के द्वारा लिखी गई साहित्य की जानकारी दी जाती है, जिससे लाखों लोग लाभान्वित हो रहे हैं। हम जैसे कई लोग जिन्हें बहुत सारे साहित्यकारों का नाम भी नहीं पता, उन साहित्यकारों की पुस्तकों का नाम पता लग रहा है।
      मैंने यह अनुभव किया है कि इस संस्थान ने देश के लिए हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए अथक प्रयास किए। मैंने देखा और महसूस किया कि डाॅ अर्पण जैन अविचल जी में हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए कितना जुनून है और इसके लिए अथक प्रयास भी कर रहे हैं और उनके प्रयासों का ही परिणाम है कि उनके इस अभियान में उनके साथ नामचीन साहित्यकार भी  जुड़ रहे हैं। आदरणीय वेद प्रताप वैदिक जी का कहना है कि हिंदी महारानी है… नौकरानी नहीं। मेरा अपना भी मानना है कि *जिस भाषा का अपना निज का साहित्य या अस्तित्व नहीं होता है,वह उस रूपवती भिखारिन की तरह है, जिसकी कोई इज्जत नहीं करता।*
       हिंदी के विकास के लिए मातृभाषा उन्नयन संस्थान ने प्रशंसनीय कार्य किये हैं। मुझे याद आता है कभी देवयानी जी ने एक मुद्दा उठाया था। उनके विद्यालय में एक ऐसा गणवेश पहनना अनिवार्य था जिस पर बैज लगा हुआ था  *नेशन बिल्डर टीचर* वे इस बात से बहुत आहत हुईं। उन्होंने कई व्हाट्सअप ग्रुप में  अपनी आवाज उठाई, लेकिन किसी भी मंच ने उनकी बात को तवज्जो नहीं दी। यही कहा गया कि यह पटल इन सब बातों के लिए नहीं है। यहाँ केवल मुद्दे से जुड़ी साहित्य रचनाएँ भेजें। सभी यह भूल गये कि कवि का धर्म क्या होता है?केवल सत्ता के भय से कविता को विरुदावली बना लेना या लोगों की सुप्त चेतना को जगा कर राष्ट्र निर्माण करना और अपनी भाषा के गौरव को पुनर्स्थापित करने के लिए प्रयास करना? लग रहा था कि इस मुहिम में देवयानी एकदम अकेली पड़ जाएंगी। तभी डाॅ अर्पण जैन अविचल जी ने अभियान की बागडोर अपने हाथ में ली। दृढ़ संकल्प के साथ इस अभियान को सफल बनाने के लिए जुनून के साथ जुट गए। *मातृभाषा उन्नयन संस्थान* ने  इसको राष्ट्र की और भारतीय भाषा की प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया।इसे एक आंदोलन की तरह लिया। बड़े शांत और भद्र तरीके से इस अभियान को चलाया गया। अर्पण जी ने मुख्यमंत्री जी से पत्र व्यवहार किया। *मातृभाषा उन्नयन संस्थान द्वारा अपनी आवाज उठाई। समाचार पत्रों में इस मुद्दे को बार बार उठाया।* धीरे-धीरे इस मुहिम में कई लोग शामिल हुए। कारवां बढ़ता रहा और लोग साथ आते गए। शुरुआत किसी ने भी की हो, मगर इसको अंजाम तक पहुँचाया डॉक्टर अर्पण जैन अविचल जी ने। उनके अनुरोध को  स्वीकार करते हुए अंग्रेजी में लिखे हुए *नेशन बिल्डर टीचर* के बैज वापस ले लिये गये। दूसरे बैज वितरित किये गये… जिन पर लिखा था *राष्ट्र निर्माता अध्यापक*
       अब तो कितनी ही बड़ी बड़ी हस्तियाँ इस मुहिम में   अपना योगदान दे रही हैं। मातृभाषा  उन्नयन संस्थान ने इस कथन को सार्थक कर दिया है कि :–
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती
तूफानों से डर कर तो नौका पार नहीं होती।
      हिंदी ग्राम और मातृभाषा उन्नयन संस्थान व संस्मय प्रकाशन ने इसके उत्थान में  नए आयाम जोड़े है। डॉ अर्पण जैन अविचल जी में राष्ट्रप्रेम का इतना जुनून और लगन है उन्होंने हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा और अंतर्राष्ट्रीय भाषा बनाने का संकल्प कर लिया है। अपना जीवन राष्ट्र के नाम समर्पित कर दिया है। सफलता भी मिली है।हिंदी के उत्थान के लिए  हिंदी में हस्ताक्षर बदलो अभियान चलाया। हजारों लोग इससे जुड़े और हिंदी भाषा के विकास में कई नए अध्याय जोड़े।
     सरकार के साथ-साथ हमें अपने स्तर पर भी यह प्रयास करने होंगे और इस तरह करने होंगे कि लोग सहज रूप से उसे स्वीकार कर सकें।
        विद्यालयों में प्राथमिक कक्षा से ही अंग्रेजी विषय लेना अनिवार्य है। अनिवार्य विषय के रूप में अंग्रेजी ही क्यों? राष्ट्रभाषा क्यों न पढ़ाई जाए? अन्य दो भाषाएँ वैकल्पिक क्यों न रखी जायें??बच्चे हिंदी में गिनती तक नहीं जानते। चाची, ताई, बुआ जैसे रिश्तों  को भी आंटी, अंकल कहकर संबोधित करते हैं। यह किसकी जिम्मेदारी है? परिवार की ही जिम्मेदारी है ना?
     हर राष्ट्र में राज्य की भाषा भी होती हैं, लेकिन एक राष्ट्रभाषा भी होती है, जो पूरे राष्ट्र में बोली जाती है। जापान,चीन,जर्मनी में लोग अंग्रेजी भाषा बिल्कुल भी प्रयोग नहीं करते। अपनी भाषा बोलते हैं। क्या उन देशों  ने तरक्की नहीं की।
      हमारे देश ने रामायण काल से लेकर महाभारत काल तक बेहिसाब तरक्की की थी। जो प्रक्षेपास्त्र आज बन रहे हैं, उनका वर्णन महाभारत काल में भी मिलता है। ब्रह्मोस मिसाइल का नाम आज सुनते हैं। ब्रह्मास्त्र शब्द सबने महाभारत में भी कई बार पढ़ा और सुना होगा। आपने आग्नेयास्त्र,वरुणास्त्र,वायवास्त्र, पाशुपतास्त्र एक्घ्नि… आदि आदि। अंग्रेजों ने हमारे देश में हिन्दी और संस्कृत सीखने के लिए मसूरी के लण्डौर में एक स्कूल की स्थापना की।(वो स्कूल आज भी है)वहाँ हिंदी और संस्कृत सीखी।हमारे वेद और उपनिषद पढ़े और हमारे देश द्वारा किये गये अनुसंधानों को अपना नाम दिया।
      देश को आजाद हुए सत्तर वर्ष हो गए।हम आज तक भी गुलामी मानसिकता में जी रहे हैं। अंग्रेजी बोलने वालों को पढ़ा लिखा और हिंदी बोलने वालों को भोंदू और अनपढ़ समझते हैं। यह हमारी गुलाम मानसिकता का परिचायक नहीं तो और क्या है?
   *अंग्रेजी अंतरराष्ट्रीय भाषा बन सकती है तो हमारी हिंदी अंतरराष्ट्रीय भाषा क्यों नहीं बन सकती?* अफसोस हम तो उसे राष्ट्रभाषा तक नहीं बना पाये, लेकिन अब अर्पण जैन जी  के प्रयासों से उम्मीद की एक किरण जागी है कि *हमारी हिंदी भाषा… अंतर्राष्ट्रीय भाषा अवश्य बनेगी*

#राधा गोयल

परिचय-

नाम:-     राधा गोयल 
पति का नाम:- श्याम सुंदर गोयल
निवास स्थान:-नई दिल्ली-110018
शिक्षा- स्नातक

संक्षिप्त परिचय: —
          हमारे परिवार में लड़कियों को ज्यादा पढ़ाना ठीक नहीं समझा जाता था। आठवीं कक्षा तक सरकारी स्कूल में पढ़ाई की। आगे पढ़ने के लिए लगातार एक महीने तक खुशामद करने के पश्चात पत्राचार माध्यम द्वारा पंजाब विश्वविद्यालय से मैट्रिक की परीक्षा दी व प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुई। फिर पढ़ाई की बंदिश; किंतु पढ़ने की ललक के कारण मैंने भी हठ पकड़ ली और पत्राचार माध्यम द्वारा ही पंजाब यूनिवर्सिटी से सन 1964 में हायर सेकेंडरी की परीक्षा दी तथा पूरी दिल्ली में टॉपर रही।आगे पढ़ने की बिल्कुल भी इजाजत नहीं मिली।
       लेखन के प्रति बचपन से ही रुचि थी, लेकिन मेरा यह शौक किसी को भी पसंद नहीं था। 1970 में सात बहन भाइयों के मध्यम वर्गीय परिवार में विवाह हुआ।ससुर का देहांत 1965 में हो चुका था।पति परिवार में सबसे बड़े हैं।परिवार की जिम्मेदारियों ने कभी मेरे शौक की तरफ मुझे झाँकने का अवसर ही नहीं दिया।अब सभी जिम्मेदारियाँ पूरी करके अपने शौक को पुनर्जीवित किया है।पति आधुनिक विचारों के हैं। उनकी इच्छा थी कि मैं आगे पढ़ूँ अतः 1986 में पत्राचार माध्यम से बी.ए किया तथा पूरी यूनिवर्सिटी में द्वितीय स्थान प्राप्त किया।
      समाज कल्याण के कामों के प्रति बहुत जुनून है और गम्भीर बीमारी होने के बावजूद मेरा जुनून मुझे जीवित रखता है।

प्रकाशित कृतियाँ:-

1-काव्य मंजरी(एकल काव्य संग्रह)
2-पाती प्रीत भरी भाग-1(एकल पुस्तक)
3-एक एकल काव्य संकलन *निनाद* व दूसरा  *आक्रोश*  प्रकाशनाधीन है।
4-कई सांझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं। 
-सम्मान 
कभी गिने नहीं।पाठकों को मेरा लिखा हुआ पसन्द आए,यही सबसे बड़ा सम्मान है।

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संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।