माँ-बाप बुढ़ापे में बोझ क्यों ?

2
0 0
Read Time2 Minute, 55 Second

pramod

बेटा अपने वृद्ध पिता को रात्रि भोज के लिए अच्छे रेस्टॉरेंट में लेकर गया। खाने के दौरान वृद्ध पिता ने कई बार भोजन अपने कपड़ों पर गिराया। रेस्टॉरेंट में बैठे खाना खा रहे दूसरे लोग वृद्ध को घृणा की नजरों से देख रहे थे,लेकिन वृद्ध का बेटा शांत था।
खाने के बाद बिना किसी शर्म के बेटा, वृद्ध को वॉशरुम ले गया। उनके कपड़े साफ़ किए,उनका चेहरा साफ़ किया, उनके बालों में कंघी की,चश्मा पहनाया और फिर बाहर लाया।
सभी लोग खामोशी से उन्हें ही देख रहे थे। बेटे ने बिल दिया और वृद्ध के साथ बाहर जाने लगा।
तभी डिनर कर रहे एक अन्य वृद्ध ने बेटे को आवाज दी और उससे पूछा ‘क्या तुम्हें नहीं लगता कि,यहाँ अपने पीछे तुम कुछ छोड़ कर जा रहे हो?’ बेटे ने जवाब दिया -‘नहीं सर, मैं कुछ भी छोड़कर नहीं जा रहा।’
वृद्ध ने कहा -‘बेटे, तुम यहाँ छोड़कर जा रहे हो, प्रत्येक पुत्र के लिए एक शिक्षा(सबक)और प्रत्येक पिता के लिए उम्मीद(आशा)।’
दोस्तों, आमतौर पर हम लोग अपने बुजुर्ग माता–पिता को अपने साथ बाहर ले जाना पसंद नहीं करते,और कहते हैं- क्या करोगे,आपसे चला तो जाता नहीं। ठीक से खाया भी नहीं जाता, आप तो घर पर ही रहो,वही अच्छा होगा।’
क्या आप भूल गए, जब आप छोटे थे और आप के माता–पिता आपको अपनी गोद मे उठाकर ले जाया करते थे। आप जब ठीक से खा नहीं पाते थे तो माँ आपको अपने हाथ से खाना खिलाती थी। खाना गिर जाने पर डाँट नहीं, प्यार जताती थी। फिर वही माँ- बाप बुढ़ापे में बोझ क्यों लगने लगते हैं?
माँ-बाप भगवान का रुप होते हैं, उनकी सेवा कीजिए और प्यार दीजिए …..क्योंकि,एक दिन आप भी वृद्ध होंगे, फिर अपने बच्चों से सेवा की उम्मीद मत करना।

                                                                     #प्रमोद बाफना

परिचय :प्रमोद कुमार बाफना दुधालिया(झालावाड़ ,राजस्थान) में रहते हैं।आपकी रुचि कविता लेखन में है। वर्तमान में श्री महावीर जैन उच्चतर माध्यमिक विद्यालय(बड़ौद) में हिन्दी अध्यापन का कार्य करते हैं। हाल ही में आपने कविता लेखन प्रारंभ किया है।

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

2 thoughts on “माँ-बाप बुढ़ापे में बोझ क्यों ?

  1. बहुत मार्मिक लघु कथा
    औए यथार्थ से परिचय कराती है

    सो सो नमन है ऐसे बेटे को आप जैसे लेखक को।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

कुछ बाकी

Fri Apr 7 , 2017
बहुत जी चुके इन वीरानों में,बस साँसों का जाना बाकी है, इस सूने आगार में दिल के तेरा आना बाकी है..। बाकी है तेरे हाथों से कुछ जाम सुनहरी रातों में, बाकी है विलय मेरा हो जाना,तेरी झील-सी गहरी आंखों में, हाथों में लेकर हाथ वो चलना,पथरीली पंगडंडी पर भरी […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।