शिक्षामंत्री के लिए मांगपत्र

0 0
Read Time12 Minute, 56 Second

vaishwik

खुशी की बात यह है कि 30 मई को नई सरकार के शपथ ग्रहण करने से पहले ही 100 दिन के जो लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं उसमें शिक्षा भी शामिल की गई है ।उसी के अनुरूप ३१ मई को नए मानव संसाधन मंत्री पोखरियाल के कार्य भर संभलते ही कस्तूरीरंगन रिपोर्ट देश के सामने रख दी गयी है –सुझावों विमर्श के लिए .इस समिति नेभी मोटा मोटी उन्ही बातो को पुनह दोहराया है जिन्हें इससे पहले पूर्व कैबिनट सचिव सुब्रह्मनिउन ने अपनी विस्तृत सिफारशो में कहा था .पहली प्राथमिक शिक्षा अपनी मात्र भाषा में हो ;अंग्रेजी लादी नहीं जाये :उन विकसित देशो से भी हमें सीखना चाहिए जोअपनी भाषा के बूते विज्ञानं और तकनीक में बहुत आगे हैं.महत्पूर्ण निष्कर्ष समिति का यह है की अंग्रेजी आरती रूप से अमीर लोगो की भाषा बन गयी और वे सत्ता और व्यवस्था पर अपनी पकड़ के बूट सार समाज और भारतीय भाषाओं को हासिये पैर धकेल रहे है .सभी नौकरियों में अंग्रेजी की प्राथमिकता ने पूरी युवा पीढ़ी को निरुत्साहित किया हुआ है.

एक सच्चे लोकतंत्र के नाते यह मौका है हिंदी सहित सभी भारतीय भाषाओं के पक्षधर जनता की भाषा के साथ खड़े हों और्पूरे उत्साह से आगे आयें .कांग्रेस सदा की तरह इसमें राजनितिक दाव पेंच खेलेगी और उसने दविड़ दलों के साथ यह खेल शुरू भी कर दिया है .वाम दलों की नियति केंद्र सरकार के अंध विरोध के चलते अवसर वाद की है .वाम दल बंगाल और केरल में अपनी भाषाओ की वकालत करते है लेकिन हिन्दीभाषी राज्यों में अंग्रेजी की .इसी का अन्जम है हिंदी का अधिकंश परजीवी लेखक अपने विनाश को देखते हुए भी चुप्पी साधे रहता है.यह खेल अब बंद होना चाहिए और रास्ट्रीय हित में तीन भाषा सूत्र को सच्चे मन से पूरे भारत में लागू करने दे.

देखा जाए तो नई सरकार और शिक्षा का नया सत्र साथ साथ शुरू हो रहे हैं. यदि सरकार वास्तव में शिक्षा की तस्वीर बदलने के लिए गंभीर है और जनता तक उसकी अपेक्षाओं के अनुरूप काम करना चाहती है तो शिक्षा से बेहतर दूसरा मौका नहीं हो सकत।। नेल्सन मंडेला से लेकर दुनिया के हर राजनीतिक नेता ,विचारकों ने बड़े परिवर्तन के लिए शिक्षा के महत्व को समझा है। पूरे देश में इस समय दाखिले की हलचल है स्नातक, स्नातकोत्तर, इंजीनियरिंग,, कानून प्रबंधन डॉक्टरी आदि हर क्षेत्र में. लेकिन गौर कीजिए सभी स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में दाखिले की प्रवेश परीक्षा का माध्यम अंग्रेजी भाषा है .27 मई को देश के विख्यात जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्रवेश परीक्षा थी लेकिन इसमें वही सफल हो सकता है जो अंग्रेजी माध्यम से पढ़ा हो. जेएनयू दिल्ली में स्थित है चारों तरफ हिंदी भाषी राज्यों से घिरा हुआ .क्या चंपारण ,छत्तीसगढ़ ,भुज.अजमेर , तेलंगाना ,लखनऊ से लेकर लातूर का विद्यार्थी जो अपनी-अपनी भाषाओं में पड़ा है, वह कभी जेएनयू में दाखिले के बारे में सोच सकता है ?बिहार के एक छात्र अंकित दुबे ने कुछ वर्ष पहले बताया था कि उसने बिहार से राजनीति शास्त्र ऑनर्स मैं स्नातक . किया था. जेएनयू में दाखिले कि लिए प्रवेश परीक्षा में लगातार दो बार बैठने के बावजूद भी इसलिए सफल नहीं हुआ कि वह अंग्रेजी में उत्तर नहीं दे सकता था. हर मंच पर ऐसे विद्यार्थी आवाज उठाते, अनुरोध करते रहे हैं.लेकिन कोई सुनने वाला नहीं . अच्छा हो नई सरकार न केवल जेएनयू बल्कि दिल्ली यूनिवर्सिटी समेत सभी लॉ यूनिवर्सिटी आदि कालेजों में भी प्रवेश परीक्षाओं में भारतीय भाषाओं को जगह दें.और अपनी भाषाओ में पढने पढ़ने की व्यवस्थ करें.

आश्चर्य की बात है कोठारी आयोग की सिफारिशों पर यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा में तो भारतीय भाषाएं को वर्ष १९७९ में कुछ जगह दी गई है, 40 साल के बाद दिल्ली में स्थित किसी विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों में हिंदी सहित भारतीय भाषाओं के बूते प्रवेश नहीं पा सकता . इसका असर पूरे देश की शिक्षा नीति पर पड़ता है. यह अचानक नहीं है कि आज राजस्थान, उत्तर प्रदेश से लेकर देश के अधिकांश गांव गांव में अंग्रेजी के नुक्कड़ स्कूल इतनी तेजी से बढ़ रहे हैं सरकारी स्कूलों को तहस-नहस करते हुए. सरकार के अकेले एक कदम से ऐसी कई समस्याएं हल हो सकती हैं .हमें नहीं भूलना चाहिए की मोदी और शाह की जुगल जोड़ी की सफलता में सबसे अधिक योगदान उनकी अपनी भाषा हिंदी गुजराती का सहज प्रवाह है. जन जन तक उसी के मुहावरे और बोली में पहुंचने की क्षमता. 2014 मैं भी इसी भाषा की क्षमता के आधार पर उन्होंने देश का दिल जीता था. यहां केवल चुनाव जीतने का प्रश्न नहीं हैपिछली बार मोदी जी के प्रधानमंत्री बनते ही सर्वोच्च अंग्रेजी दा नौकरशाह भी रातों-रात अपनी बात हिंदी में समझने समझाने लगे थे. हालांकि दिल्ली की फाइलों पर अभी भी अंग्रेजी उसी तरह हावी है. नई सरकार से अपेक्षा है है कि भारतीय भाषाओं के लिए कुछ सार्थक कदम उठाएं उठाएं .संघ लोक सेवा आयोग पर अंग्रेजी का साया बहुत गहरा है. हाल ही में घोषित सिविल सेवाओं के परिणाम भारतीय भाषाओं के एकदम खिलाफ गए हैं.मात्र चार प्रतिशत . दरअसल वर्ष 2011 में तत्कालीन सरकार द्वारा सिविल सेवाओं की प्रारंभिक परीक्षा में अंग्रेजी लाद देने के दुष्परिणाम आज तक हावी हैं . आयोग की अन्य राष्ट्रीय परीक्षाओं जैसे वन सेवा, इंजीनियरिंग सेवा, चिकित्सा सेवा मैं भी भारतीय भाषाओं की शुरुआत तुरंत की जाए .स्टाफ सिलेक्शन कमिशान में तो अंग्रेगी और भी ज्यादा हावी है . वरना अंग्रेजी और अमीरी के गठजोड़ से सिविल सेवाएं अंग्रेजी और अमीरी के द्वीप बनकर रह जाएंगी. क्या यह उस जनादेश के खिलाफ नहीं होगा जिस भाषा में जनता से वोट मांगे गए थे। कस्तूरी रंगन समिति ने अपनी रिपोर्ट में इन अंग्रजीदा अमीरों की अच्छी खबर ली है .भारतीय लोकतंत्र के ये सबसे बड़े दुश्मन है.यदि नौकरी भारतीय भाषाये आ गयी तो पूरा परिद्र्स्य बदल जायेगा .

पूरे शिक्षा जगत की तस्वीर कई स्तरों पर बदलने की जरूरत है। उचित तो यही होगा पाठ्यक्रमों में कुछ शब्द , कुछ अध्याय बदलने के हट से मुक्ति पाते हुए कुछ बड़े परिवर्तनों की ओर बढे . हर पैमाने पर हम दुनिया के विकसित देश अमेरिका चीन से लेकर यूरोप के मुकाबले बहुत पीछे है.विकास का रास्ता केवल विज्ञानं की बेहतर शिक्षा से ही संभव है . वैज्ञानिक चेतना ,तर्कशक्ति के बूते .अतीत के किसी काल खंड में हमारी उपलब्धियां रही होंगी लेकिन हम बहुत दिनों तक अतीत के नशे में नहीं

रह सकते .हमें तुरंत विज्ञान शिक्षा, शोध के लिए कदम उठाने होंगे .सिर्फ इंजीनियरिंग

कॉलेज संस्थान खोलना पर्याप्त नहीं है. गुणवत्ता सुधारो वरना उन्हें बंद किया

जाए .ये नकली संसथान देश की गरीब जनता को शिक्षा के नाम पैर ठग रहे हैं. .अफसोस की बात है कि पिछले दिनों कॉलेज की लैबोरेट्री लगभग गायब हो चुकी हैं.न संसाधन है न शोध के प्रति छात्र ,शिक्षको का झुकाव .मत भूलिए डीएनए के खोजकर्ता वैज्ञानिक वाटसन, डार्विन के विकासवाद को आगे बढ़ाने वाले मिलर आदि ने ऐसी खोजे अपने कॉलेज के दिनों में ही की थी जिन पर आगे चलकर नोबेल पुरुष्कार मिले .दुनिया के सर्वश्रेस्ट ५०० संस्थानों में शामिल होने की बाते भी अभी हवा में ही हैं .इसके लिए विश्व विध्य्लायो में नियुक्ति प्रक्रिय को दुरुस्त करने की जरुरत है .तीन वर्ष पहले पुर्व कैबिनेट सचिव टी एस आर सुब्रमनिउन समिति ने upsc जैसा भरती बोर्ड बनाने की सिफारिश की थी .उस पर तुरंत अमल करने की जरुरत है .आज हमारे उच्च शिक्षा संसथान यदि डूब रहे है तो सही भरती ,प्रशिषण की खामियों के चलते .वंश वाद ने भरतीय राजनीति को जितना बर्बाद किया है ,विश्व विध्याल्लायो को और ज्यादा .

पुस्तकालय भी एक महत्वपूर्ण कदम बन सकता है शिक्षा में सुधार के लिए विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में .क्या बिना पुस्तकालय के किसी स्कूल ,कॉलेज या आधुनिक समाज की कल्ल्पना की जा सकती है ?पुस्तकालय गाँव शहर में खोलने की बाते तो दसको से हो रही है ,इस सरकार को एक मजबूत इरादे के साथ पूरा करना होगा. अमेरिका और दूसरे देशों में शिक्षा की बेहतरी के लिए पुस्तकालयो ने शिक्षा की बेहतरी में एक विशेष भूमिका निभाई है और निभा रही हैं .शिक्षा की गुणवत्ता के लिए ही हमारे लाखों छात्र हर साल अमेरिका ऑस्ट्रेलिया कनाडा की तरफ कूच कर रहे हैं लाखो ,करोडो की फीस देकर ..नयी सरकार को इसे रोकने के लिए तुरंत समय बध कदम उठाने होंगे . दुनिया की सबसे ज्यादा नौजवान पीढ़ी अच्छी शिक्षा के दम पर ही देश को आगे ले जाने में समर्थ हो सकती है . नयी सरकार ,नए मंत्री के सामने चुनौती बड़ी जरुर है लेकिन जनता ने जिस विस्वास से उन्हें चुना है उस पर खरा तो उतरना ही होगा .

प्रेमपाल शर्मा

पुर्व संयुक्त सचिव, रेल मंत्रालय एवं जाने माने शिक्षाविद।

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

कब और कैसे मिलेगी शहीदों की सच्ची श्रृद्धांजलि

Mon Jun 17 , 2019
दशकों से आतंक को झेल रहे कश्मीर ने बुधवार को फिर 05 सीआरएफ जवानों को निगल लिया।यह आतंकी हमला अनंतनाग जिले में हुआ।चार अन्य सुरक्षाकर्मी घायल हुए।एक आतंकवादी भी मुठभेड़ में मारा गया।माना जा रहा है कि कम से कम दो आतंकियों ने अनंतनाग के व्यस्त केपी रोड पर सीआरएफ […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।