कई वर्षों बाद अपने गाँव जाऊंगा,
जाऊंगा और मिलूंगा सबसे…
आराम से
अपने गाँव,मोहल्ला,स्कूल,पीपल का पेड़,
काका-काकी,अपने खेत-खलिहानों,पुराने कुए,
कालू बनिया और महुए का पेड़ सबसे…
और सभी तो याद है लगभग
पर भूल चूका हूँ,
महुए का पेड़
उसकी लम्बाई उसका आकार
पत्तियां और उसकी जगह,
क्योंकि बचपन में जाता था
अपनी दादी अम्मा के साथ
तड़के-तड़के सुबह
बांस की टोकरी लेकर
महुए बीनने अपने पेड़ों से
और टोकरी भर लौटता था अपने घर को,
घर आते ही महुए की मदमाती गंध से
पूरा घर महक जाता था
अभी कुछ दिनों पहले सुना था काकी से,
आबादी की ज़मीनों में
बहुत से पेड़ों को काट दिया है
सरकारी लक्कड़हारों ने,
कुछ ही पेड़ बचे हैं अब
जिन्हें काकी की बूढी आँखें नहीं पहचान पाती अब,
पर मेरे दिल में एक छवि है महुए के पेड़ों की
जिसके सहारे पहचान लूँगा
मैं अपने महुए के पेड़ों को||
#संजय भास्कर
परिचय : संजय भास्कर का जन्म स्थान-फतेहाबाद(हरियाणा)है,और मूल रूप से हरियाणा के ही निवासी हैं| आप हिन्दी में स्वतंत्र लेखन करते हैं| शिक्षा-एमए(पत्रकारिता)है|