विकास आज बेहद खुश था, क्योंकि उसके गमले में आज हरी हरी और नन्हीं नंन्ही पत्तियां आ चुकी थीं।
.. दस साल के विकास.ने आठ दस दिन पहले ही कटी हुई सब्जी के कचरे में से कुछ बीज अलग करके छोटे से गमले मे ं डाल दिये थे। गमले में मिट्टी उसने घर के माली से डलवा ली थी।
..माली एक दिन छोड़ कर आयया करता था । माली का आना और विकास का परछाई बनकर उसके साथ साथ घूमना और बार बार सवाल करना.. विकास की एक आदत बन चुकी थी।
माता पिता दोनों अपने बेटे की इस प्रकार की गतिविधि देखकर अख्सर कहते— ” क्यों विकास । ईंजीनियर का बेटा माली बनेगा? ”
विकास सुनी अनसुनी कर देता।
कुछ दिन पक्षले विकास.के घर एक बुजुर्ग मैहमान आए थे,जो आज जा रहे थे।
उन्होनेँ जाते जाते अपने मित्र और विकास के दादा जी से
एक बात कही—
” सुन यार दीपचंद तुम्हारा.पोता एक दिन बड़ी शक्सियत बनेगा”
दीफचंद ने विस्मय से अपने मित्र की ओर देखा मानों पूछना चाह रहा.हो ‘कैसे?’
मित्र ने अपना अधूरा वाक्य पूरा किया
“……. बशर्ते इसके मां बाप इसकी परवरिश ठीक वैसी ही करें, जैसे यह बालक अफने गमले में पौधा विकसित करने के लिये कर रहा। है।”
#डा. चंद्रा सायता
इंदौर(मध्यप्रदेश)परिचय-
नाम:- डॉ चन्द्रा सायताजन्मस्थान:- सख्खर सिंध(अखंड भारत वर्तमान पाकिस्तान)
शिक्षा:- स्नातकोत्तर ( समाजशास्त्र, हिंदी साहित्य तथा अंग्रेजी साहित्य), विधि स्नातक,पीएचडी.डी( अनुवाद प्रक्रिया
:-एक शास्त्रीय अध्ययन)
सेवाऐं:-प्राध्यापक, अन्वेषक(गृह मंत्रालय, भारत सरकार ंका जनगणना विभाग) तथा सहायक निदेशक ( राज भाषा)
प्रकाशन:-काव्य संग्रह (परिचय, कलरव,मन की रेखाएं)
लघु कथा संग्रह ( गिरहें)
काव्य संकलन( ज्योतिका,काव्य सुरभि, यशधारा
लघु कथा सप्तक, आदि ।
पत्र – पत्रिकापत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन
पुरस्कार/सम्मान:-भारतीय अनुवाद परिषद ,नई दिल्ली
से ‘नातालि’सम्मानतथा अन्य स्थानीय राज. राज्यस्तरीय तथा राष्ट्रीय स्तर की संस्थाओं से सम्मान ।
लेखन विधाएं:- काव्य, लघु कथा, आलेख, अनुवाद (अं-हि. ,हिंदी. अंतिम)विदेश भ्रमण:– अमेरिका, ब्रिटेन, दुबई, थाई्लेडं, पाकिस्तानरूस नेपाल आदि।
दिस,2019 में प्रकाशित मेरा लघुकथा संग्रह ‘ माटी कहे कुम्हार से’