द्वितीय पुण्यस्मरण
इमारत की बुलंदियों और ऊँचाई का एक महत्वपूर्ण और कारक तत्व उसकी नींव होती है, वही नींव जो इमारत का भार भी खुद ही ढोती है और सदैव इमारत की सफलता की मंगल कामना भी करती है, किन्तु कभी कोई शिकायत नहीं रखती। आज इंदौर वैश्विक फलक पर अपनी बुलंदी पर गर्वित है, और उस इंदौर की नींव का एक हिस्सा उस शख्स के नाम भी आता है जिसे पूरा इंदौर ही नहीं वरन समूचा मध्यप्रदेश सेठ साहब या सफ़ेद शेर के नाम से जानता है। वही दहाड़ते इंदौरी शेर सुरेश सेठ साहब इस इंदौर की प्रगति का एक विस्तारवादी चेहरा रहें हैं।
फरवरी माह और साल 2018 इंदौर ही नहीं वरन समूचे मध्यप्रदेश को स्तब्ध कर गया जब एक विस्तारवादी व्यक्तित्व सुरेश सेठ साहब ने इस फानी दुनिया को अलविदा कह दिया था।
शेर-ए-इंदौर के नाम से मशहूर सुरेश सेठ साहब लगभग २५ दिनी शारीरिक अस्वस्थता के बाद 22 फरवरी 2018, गुरुवार को हमसे शरीर रूप से तो विदा तो हो गये पर हॄदय में सदा के लिए बस गए थे। सेठ साहब का जन्म १८ नवंबर १९३१ को हुआ था।
जब भी ज़िक्र होगा इंदौर के विकास का तो सुरेश सेठ नाम लिए बिना वो चर्चा ही अधूरी मानी जाएगी। सुरेश सेठ उन नेताओं में से थे जिनके लिए कभी पार्टी सर्वोपरि नहीं रही बल्कि उनकी भूमिका सत्तापक्ष में रहते हुए भी विपक्ष जैसी थी। वे निडर होने के साथ-साथ जिद्दी और बेबाक ही रहें। जो उन्हें जायज नहीं लगता था, उसका वे किसी भी हद तक जाकर विरोध करते थे। वे ग़लत होने पर कांग्रेस पार्टी के खिलाफ भी वे बोलने से नहीं चुके। शहर की शान राजवाड़ा को बचाने के लिए भी अपनी ही पार्टी की सरकार के खिलाफ आंदोलन किया था।
सुरेश सेठ साहब एक व्यक्तित्व ही नहीं थे बल्कि विकासशील इंदौर का विस्तारवादी अध्याय रहें| उनके जाने से शहर ने एक ऐसा हमदर्द या कहें मसीहा खो दिया जो न केवल इंदौर के विकास की बात करता था बल्कि इंदौर के हरवर्ग की चिंता को अपने जेहन में समेटकर उसे हल करने के लिए जूझता भी था ।
अखबारी दुनिया को दिया ‘इंदौर समाचार’
सन १९५७ में शहर की पत्रकारिता को निडरता और स्वच्छता की मिसाल देने के साथ दैनिक इंदौर समाचार पत्र का प्रकाशन शुरू हुआ। सेठ साहब ने कभी भी अपने निजी लाभ-हानि को महत्व नहीं दिया और स्वच्छ पत्रकारिता कर इस शहर को पत्रकारिता का एक उत्कृष्ठ अध्याय दिया।
कंदीलयुग को हटा कर लाए थे इंदौर के अच्छे दिन
शेर-ए-इंदौर कहे जाने सेठ ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत वर्ष 1957 में पार्षद का चुनाव लड़कर की। 1957 से 60 तक वे पार्षद रहे। 1969 में इंदौर नगर निगम के महापौर बने। तब शहर के कई इलाकों में सड़कों पर कंदील जलाकर रोशनी की जाती थी। सेठ ने इनकी जगह बिजली के बल्ब लगवाए। सेठ साहब इंदौर के महापौर रहने के साथ ही प्रदेश में रही कांग्रेस सरकार में मंत्री भी रहे। जब वे इंदौर के मेयर चुने गए तब इंदौर की सड़कों को रात में रोशन करने के लिए लालटेन लगाई जाती थीं। स्ट्रीट लाइटों से जगमग इंदौर की सड़कों पर उनके कार्यकाल में ही पहली बार स्ट्रीट लाइटें लगीं। स्ट्रीट लाइट लगाने की कहानी बड़ी रोचक है। मेयर बनते ही इंदौर को सजाने का सपना लिए सेठ जी ने मुंबई की राह पकड़ी। सेठ साहब मुम्बई में कई दिनों तक रहे और मुंबई की गलियों में घूमकर वहाँ के विकास को देखा और फिर उसी तर्ज पर इंदौर को संवारने का सिलसिला शुरू हुआ।
८० के दशक में भी रहे आधुनिक सोच के सेठ साहब
सुरेश सेठ साहब 40 वर्ष पहले भी आधुनिक इंदौर की सोच रखते थे। उन्होंने 80 के दशक में विद्युत शवदाह गृह और बच्चों का अस्पताल बनवाने का काम किया। भारी वाहनों का शहर में प्रवेश रोकने के लिए वर्ष 1980 में दो रिंग रोड बनाने का प्रस्ताव तैयार किया था।
ताउम्र स्वच्छ राजनैतिक व्यक्तित्व रहें
1989 में विधानसभा में धारा 370 हटाए जाने का अशासकीय प्रस्ताव रखकर सभी को चौंका दिया था। तब उन्हें पार्टी से हटाने का फैसला भी हुआ लेकिन हटाया नहीं जा सका। 1986 में उन्होंने विधानसभा से इस्तीफा भी दिया था। सेठ साहब और विष्णुप्रसाद शुक्ला के बीच 1990 का विधानसभा चुनाव सबसे चर्चित था। शुक्ला तब भाजपा के दबंग नेता माने जाते थे लेकिन सेठ ने 1082 मतों से जीत हासिल की। इसके बाद सेठ ने मेयर और विधानसभा के चुनाव लड़े लेकिन जीत नहीं पाए।
नगर निगम करेगी सेठ साहब के नाम पर मार्ग का नामकरण
चालू वर्ष 2020 की अंतिम महापौर परिषद बैठक महापौर व विधायक श्रीमती मालिनी लक्ष्मणसिंह गौड की अध्यक्षता में महापौर सचिवालय पर संपन्न हुई थी जिस बैठक में आयुक्त आशीष सिंह, महापौर परिषद सदस्य सुरज कैरो, बलराम वर्मा, सुधीर देडगे, संतोषसिंह गौर, अश्विन शुक्ल, श्रीमती शोभा गर्ग, सचिव अरूण शर्मा, अपर आयुक्त एसकृष्ण चैतन्य, संदीप सोनी, श्रृंगार श्रीवास्तव, एमपीएस अरोरा, उपायुक्त, विभाग प्रमुख की उपस्थिति में श्री नगर स्थित मार्ग का नाम पूर्व मंत्री स्व. श्री सुरेश सेठ के नाम से करने का फ़ैसला लिया है। शहर को ओर से सेठ साहब को स्मृति पटल पर सदा अमर रखने के लिए महापौर बधाई की पात्र है।
डॉ.अर्पण जैन ‘अविचल’
#डॉ.अर्पण जैन ‘अविचल’
परिचय : डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’इन्दौर (म.प्र.) से खबर हलचल न्यूज के सम्पादक हैं, और पत्रकार होने के साथ-साथ शायर और स्तंभकार भी हैं। श्री जैन ने आंचलिक पत्रकारों पर ‘मेरे आंचलिक पत्रकार’ एवं साझा काव्य संग्रह ‘मातृभाषा एक युगमंच’ आदि पुस्तक भी लिखी है। अविचल ने अपनी कविताओं के माध्यम से समाज में स्त्री की पीड़ा, परिवेश का साहस और व्यवस्थाओं के खिलाफ तंज़ को बखूबी उकेरा है। इन्होंने आलेखों में ज़्यादातर पत्रकारिता का आधार आंचलिक पत्रकारिता को ही ज़्यादा लिखा है। यह मध्यप्रदेश के धार जिले की कुक्षी तहसील में पले-बढ़े और इंदौर को अपना कर्म क्षेत्र बनाया है। बेचलर ऑफ इंजीनियरिंग (कम्प्यूटर साइंस) करने के बाद एमबीए और एम.जे.की डिग्री हासिल की एवं ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियों’ पर शोध किया है। कई पत्रकार संगठनों में राष्ट्रीय स्तर की ज़िम्मेदारियों से नवाज़े जा चुके अर्पण जैन ‘अविचल’ भारत के २१ राज्यों में अपनी टीम का संचालन कर रहे हैं। पत्रकारों के लिए बनाया गया भारत का पहला सोशल नेटवर्क और पत्रकारिता का विकीपीडिया (www.IndianReporters.com) भी जैन द्वारा ही संचालित किया जा रहा है।लेखक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं तथा देश में हिन्दी भाषा के प्रचार हेतु हस्ताक्षर बदलो अभियान, भाषा समन्वय आदि का संचालन कर रहे हैं।