.. विचारों, वक्तव्यों, घोषणाओं तथा नियमों से हम स्वयं को हिंदी के जितने करीब महसूस करते हैं,उतना हम हैं नहीं। वास्तव में हम उससे दूर होते जा रहे हैं। वरना आज हिंदी या राजभाषा के विमर्श के लिए यूं सैकड़ों आयोजन करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती । कभी अंग्रेजी […]