Read Time6 Minute, 11 Second
हम प्रतिवर्ष मातृ दिवस मनाते हैं। माता सन्तान को जन्म देती है। नो महीने गर्भ में रखती है। कितना दुख दर्द सहती है। ऐसी अवस्था मे भी घर के सारे काम करती हुई परिवार की देखरेख,बच्चों की देखभाल करती है। माता सहनशक्ति की प्रतीक होती है। वह खुद भूखी रहकर अपनी संतान के लिए हाड़ तोड़ मेहनत करती है। गरीब मजदूर की माताएँ बहने बच्चे को पीठ के पीछे बांधकर मजदूरी करती है।
लू के थपेड़े सहती है। ठण्ड की ठिठुरन सहती है। बारिश में घरों में छत टपकती है वह दुख भी सहती है।
माँ सृष्टि का आधार है। माँ ईश्वर का दिया वरदान है। माँ सीता सावित्री सी। माँ गार्गी मदालसा सी है। माँ बच्चे की प्रथम गुरु होती है। परिवार ही उसकी प्रथम पाठशाला होती है। माँ उंगली पकड़ चलना सीखाती है। संस्कारों का बीजारोपण करती है माँ। माँ के कदमों में जन्नत होती है। माँ जिसके घर परिवार में होती है वहीं स्वर्ग हो जाता है। वहीं मन्दिर लगने लगता है।
माँ की दुआएं कभी खाली नहीं जाती है। भगवान श्री राम की माता कौशल्या जी ने उन्हें मर्यादा का पाठ पढ़ाया। आज सारा विश्व उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहता है। बड़ों की सेवा करना सिखाया। आज रामायण से हम बच्चों को ये सब गुण सीखाते हैं। भगवान कृष्ण की माता यशोदा जी ने कर्म की शिक्षा दी। उसी कृष्ण ने गीता ज्ञान देकर विश्व के तमाम लोगों को कर्म पथ पर चला दिया। माता जीजाबाई ने शिवाजी को शिक्षा दी। आगे चलकर वे छत्रपति कहलाये। माताएँ विदुषी हुई माता गार्गी के नाम से सरकार आज भी बालिकाओं को गार्गी पुरस्कार से समान्नित करती है। कई वीरांगनाओं ने इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अपना नाम अंकित करा दिया। झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई को कौन नहीं जानता। वह अमर हो गई। अंग्रेजी सेना से जिसने अकेले ही युद्ध किया था। खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी। रानी पद्मनी ने जौहर किया। अपनी आन बान बचाई। माता पन्ना की स्वामिभक्ति देखते ही बनती है।
इतिहास भरा पड़ा है। माताओं ने देश को नई राह दिखाई है। राजनीति,कला,खेल,ज्ञान,विज्ञान सहित सभी क्षेत्रों में माताओं ने देश का गौरव बढ़ाया है। इसीलिए हम प्रति वर्ष मातृ दिवस मनाते हैं। उनके चरण पूज कर उनसे आशीर्वाद लेते हैं।
जिन परिवारों में बच्चों के पिता नहीं होते उन्हें माता ही मजदूरी कर पढ़ाते लिखाते हैं। माताएँ जो संस्कार देती है वे ही संस्कार संतान को आगे बढ़ाते हैं। माताओं को चाहिए कि वे बालक बालिकाओं को पर्याप्त समय दें। उन पर नज़र बनाये रखें।
आज के डिजिटल युग मे माताएँ नोकरी करने जाती है। सुबह निकलती है। देर रात तक घर आती है। बच्चे नोकरों के भरोसे रहते हैं न ढंग से खाते पीते हैं न पढ़ते हैं। भूखे ही सो जाते हैं। धन कमाओ लेकिन थोड़ा समय तो संतान के लिए भी निकालें। भौतिक विलासिता के साधनों को इकट्ठा करने के पीछे रात दिन लोग बस रुपया कमाने में लगे हैं। आज धन को महत्व देने लगे हैं। मां बाप का प्रेम बच्चों को नहीं मिल रहा। आज मातृ दिवस पर सभी संकल्प करें कि हम बालक बालिकाओं को समय देंगे। उनकी पढ़ाई लिखाई में सहयोग करेंगे। आज के बच्चे कुपोषित कमजोर कृशकाय से हो गए हैं। तनाव में रहकर पढ़ रहे हैं। कितनी पढ़ाई कर लो नोकरी नहीं मिलती ये बात दिलो दिमाग मे उनके घर कर गई है। दिखावटी मुस्कराहट रह गई। मन से अब कौन हँसता है। हर शख्स मन ही मन रोता है।
माँ को लोग वृद्धाश्रम छोड़ आते हैं ।कई लोग माँ का अपमान करते है ओर सुख भोग करने की मन मे कामना करते हैं। भला कोई माँ को दुख पहुंचा खुश रह सकता है। कदापि नहीं। आओ माँ की सेवा करें।
#राजेश कुमार शर्मा ‘पुरोहित’
परिचय: राजेश कुमार शर्मा ‘पुरोहित’ की जन्मतिथि-५ अगस्त १९७० तथा जन्म स्थान-ओसाव(जिला झालावाड़) है। आप राज्य राजस्थान के भवानीमंडी शहर में रहते हैं। हिन्दी में स्नातकोत्तर किया है और पेशे से शिक्षक(सूलिया)हैं। विधा-गद्य व पद्य दोनों ही है। प्रकाशन में काव्य संकलन आपके नाम है तो,करीब ५० से अधिक साहित्यिक संस्थाओं द्वारा आपको सम्मानित किया जा चुका है। अन्य उपलब्धियों में नशा मुक्ति,जीवदया, पशु कल्याण पखवाड़ों का आयोजन, शाकाहार का प्रचार करने के साथ ही सैकड़ों लोगों को नशामुक्त किया है। आपकी कलम का उद्देश्य-देशसेवा,समाज सुधार तथा सरकारी योजनाओं का प्रचार करना है।
Post Views:
240
Thu May 9 , 2019
1. बसा है जो मेरे मन में वो अब कहने की बारी है कि मेरे दिल के आईने में बस सूरत तुम्हारी है जो पूछा मैंनें यारों से बताओ क्या हुआ है ये कोई कहता मोहब्बत है कोई कहता बीमारी है 2 नहीं आता समझ में ये […]