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दिल्ली की चौखट पे आज, संविधान बना फरियादी है
ये कैसी आज़ादी है भाई, ये कैसी आजादी है।।
कोई संविधान को जला रहा, कोई नियम अपने चला रहा
कोई हक सबका छीन रहा, कोई देश लूटने में लीन रहा
और देश को विकसित करने की, करवाते रहे मुनादी है
ये कैसी आज़ादी है भाई, ये कैसी आजादी है।।
कोई अपने हक के लिए लड़ रहा, कोई जाति धर्म पे झगड़ रहा
ये कुर्सी वाला दानव, उन्माद में सबको रगड़ रहा
मानव मानव से दूर रहे, ये समानता कैसी ला दी है
ये कैसी आज़ादी है भाई, ये कैसी आजादी है।।
डायर सा गोली चलवाते, निर्दोष को लाठी से पिटवाते
और केस बनाते जबरदस्ती, फूंक देते गरीबों की बस्ती
अपना हक मांगने वालों को, शासन कैसे तड़पाती है
ये कैसी आज़ादी है भाई, ये कैसी आजादी है।।
अंग्रेजों सा शोषण करते, पूंजीवादी पोषण करते
सत्ता शासन का अहंकार, ला देता है मन मे विकार
इनके शोषण से शोषित ये, भारत की जन आबादी है
ये कैसी आज़ादी है भाई, ये कैसी आजादी है।।
कोई खून पसीने से लथपथ, कोई बैठा है दस जनपथ
कोई खेतों मे करें काम, कोई ए०सी०में करता आराम
कोई दाम लगा आनाजों की, कृषकों की करें बरबादी हैं
ये कैसी आज़ादी है भाई, ये कैसी आजादी है।।
अपने घर मे नौकर बनकर, मालिक के जुल्मों को सहकर
मजदूरों सा जीवन जीकर, और खून भरे आंसू पीकर
तानाशाही को देख देख, ‘एहसास’ हुआ फौलादी है
ये कैसी आज़ादी है भाई, ये कैसी आजादी है।।
#अजय एहसास
परिचय : देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के सुलेमपुर परसावां (जिला आम्बेडकर नगर) में अजय एहसास रहते हैं। आपका कार्यस्थल आम्बेडकर नगर ही है। निजी विद्यालय में शिक्षण कार्य के साथ हिन्दी भाषा के विकास एवं हिन्दी साहित्य के प्रति आप समर्पित हैं।
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