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आज आपका गुड बाय मेल पड़कर कुछ ख़ुशी तो कुछ दुःख हुआ। परन्तु दुःख को भूलकर हमें ख़ुशी का ही साथ देना होगा क्योकि प्रक्रति का नियम है की जो आते है तो उसे जाना भी पड़ता है । जीवन एक नदी की तरह है जो हमेशा ही बहता रहता है। आज इधर तो कल उधर और परसों कही और कुछ दिन तक नदी का पाने भी एक स्थान पर थोड़े से समय के लिए स्थिर सा हो जाता है परन्तु जैसे ही मौका मिलाता है उसकी रफ़्तार बढ जाती है और वो फिर से बहाने लगता है। ठीक उसी तरह हम और आपका साथ है जब तक हम लोगो का पड़ाव यहाँ पर था तब तक हम और आप सभी जन एक ही छत के नीचे बैठकर सब कुछ किया और अपने साथ अब बस हम यादो का पिटारा लेकर जा रहे है। मुझे तो ऐसा लगा ही नहीं की आप आज सेवा निवृत हो रहे हो। दिल और दिमाग में ऐ ही सवाल बार बार आ रहा है की ये हो ही नहीं सकता की हम और आप अब जुदा हो रहे है । साथ गुजारे बो पाल हमें अब पूरी जिन्दगी बार बार याद आते रहेंगे। परन्तु कार्य करने की भी एक सीमा भगवान ने बनाई है जिसके अनुसार हमें इस उम्र के पड़ाव पर आकर अपने लिए अब वास्तविक जीना का समय आया है पहले तो पढाई फिर नौकरी की चिंता उअके बाद शादी तथा माँ बाप और पत्नी की चिंता और फिर अपने बच्चो को सही शिक्षा आदि दिलाने की चिंता और फिर उनकी शादी करना और अपनी तमाम जिम्मेदारियों से इस समय तो मुक्ति मिलाती है पूरी जिंदगी हम कभी भी अपने लिए नहीं जी सके है। अब हमें अपनी जिंदगी के जो ये पाल मिले है उसे अध्यात्मिक साहित्य और सामाजिक गति विधियों में अपने को समर्पित करने का समय आ गया। कुल मिलकर अपने अगले जन्म के लिए कर्मो का समय अब आप को मिला है। जिसका हमें बहुत वर्षो से इन्तेजार था। क्योकि काम काम करते करते हम इतना थक जाते है की कभी अपने लिए कुछ जीवन भर कर ही नहीं सके। विदाई के पालो को हमें दुखी होकर नहीं दिखाना चाहिय वरन वो ख़ुशी अपने चहरे पर दिखाना चाहिए जिसे हम और आप सही विदाई का दिल से एहसास कर सके। आपको और आपके परिवार को मेरी तरफ से बहुत बहुत शुभ कामानाये की आप जहाँ भी रहे स्वथ्य प्रसन्नचित और मस्त रहे। जिंदगी में कभी भी इस न चीज की मदद की जरूरत हो तो हमें जरूर बिना संचोक किये लिखना या कहना। मेरे से जो भी हो सकेगा में उसके लिए सदा ही आपकी मदद करूँगा। यदि १९ वर्षो तक हमने आपके साथ काम किया है यदि उस दौरान यदि कोई बात आपके विशाल ह्रदय को यदि चुभ गई हो तो हम सह्रदय से आप से क्षमा मंगाते है। में मानव हूँ और गलतियाना करना हम सब का शोभाव सा होता है तभी तो हम इंसान है। चार पन्तियो के साथ अपनी भावनाए आपको समर्पित कर रहा हूँ :-
जिंदगी में सदा मुस्कराते रहो।
फासले कम करो,
दिल मिलते चलो।
दर्द कैसा भी हो,
आंखे नम न करो।
रात काली ही सही,
पर गम न करो।
एक सितारा बनो, जगमगाते रहो।
फासले काम करो,
दिल मिलते चलो।
संजय की ये भावना , सदा रखा अपने साथ।
कभी कभी हमें भी याद कर लिया करो।
और अपनी यादो से हमें भी महका दिया करो।
सेवा निवृत होना भी जीवन का बहुत ही बड़ा और कार्य होता है और यहीं से हमें अपनी कीमत का एहसास होता है की हमारे बच्चे जिन्हें पाल पोश कर इस काबिल बना दिया की आज वो समाज और देश का नाम रोशन कर रहे है। अब वो हमें कितना सम्मान और इज्जत और हम दोनों पति पत्नी जो की उनके माँ बाप है कितना ख्याल रखते है। क्योकि हम तो अब कार्य करने से सेवा निवृत हो गए है। अब हम तो भगवान का भजन करके बाकि का जीवन निकलना चाहूँगा। और सब आप हमारे खुद के बच्चो पर निर्भर करता है की हम सेवा निवृत हुए है या फिर से कर्म शाला की ओर पुन; कदम बडाना पड़ेगा।
#संजय जैन
परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।
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