सारी रात मै ऐसी तडफती रही।
जैसे बिन पानी मीन तडफती रही
भले ही दीया मेरे हाथ में था।
सारी रात मै यूहीं भटकती रही।।
सारी रात मै बिल्कुल न सो सकी।
तकिए को इधर उधर पटकती रही
आंखो में बिल्कुल नींद न थी।
सारी रात करवटें बदलती रही।।
द्वार पर मेरी आंखे टिकी थी।
सारी रात इंतजार करती रही।।
चादर पर सलवटें पड़ती रहीं।
मै अपने आप में सिमटती रही।।
वे अभी तक आए क्यो नहीं ?
ये बात दिल में खटकती रही।।
दरवाज़े पर हवा से आहट होती।
मै दरवाजा खोलकर देखती रही।
पूरी रात उसने मुझे तडफा रक्खा
तकिये को इधर उधर करती रही।
ज़िक्र करू कया परेशानियों का।
रस्तोगी की कलम लिखती रही।।
आर के रस्तोगी
गुरुग्राम