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मुझे भी किसी ने दुआओ में मांगा था,
किसी माँ के दामन की टुकड़ा थी मैं l
पिता ने पाला था बड़े अरमानों से,
सब कहते थे कि,चाँद का मुखड़ा थी मैं ll
पढ़-लिखकर कामयाब होना चाहती थी,
मुकम्मल हर ख़्वाब करना चाहती थी l
गुड्डे-गुड़ियों की शादियाँ रचाती थी,
मैं भी अपनी की शादी के सपने सजाती थी ll
एक दिन एक बेगाने ने सपने प्यार के दिखलाए,
अपनी फरेबी बातों से,नादां के दिल को बहलाया l
उड़ी संग मैं उसके एक दिन,छोड़ के सारे बंधन,
बांहों में कर दिया था प्यार के,मैंने सर्व समर्पण ll
किसे पता था कि,नारी यहाँ,वस्तु समझी जाती है,
भाव कौड़ियों के बाज़ारों में,ये अबलाएं बेची जाती है l
मुझे भी बेच दिया उसने,उन काले बाज़ारों में,
श्रृंगार सिसकता है जहाँ,इज्ज़त के व्यापारों में ll
नीलाम जहाँ निज़ काया का,उजलापन होता जाता है,
लाज़-शर्म का जहाँ पे घूँघट,सरेआम उछाला जाता है l
हर एक लड़की की यहाँ,एक सुबकती हुई कहानी है,
प्यार ने बेचा है किसी को,कोई गरीबी की निशानी है ll
काल कोठरी में जीवन है,न द्वार कोई-न झरोखा है,
जो उम्मीद यहाँ दिखाता,बो बस शरीर का भूखा है l
बदनाम गलियों में घुटकर,बस रह गया है मुझे मरना,
हे विधाता किसी जन्म में,अब बिटिया नहीं मुझे करना ll
#सुमित अग्रवाल
परिचय : सुमित अग्रवाल 1984 में सिवनी (चक्की खमरिया) में जन्मे हैं। नोएडा में वरिष्ठ अभियंता के पद पर कार्यरत श्री अग्रवाल लेखन में अब तक हास्य व्यंग्य,कविता,ग़ज़ल के साथ ही ग्रामीण अंचल के गीत भी लिख चुके हैं। इन्हें कविताओं से बचपन में ही प्यार हो गया था। तब से ही इनकी हमसफ़र भी कविताएँ हैं।
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