साहित्य संगम संस्थान के विषय छंदोत्सव विशेषांक समीक्षा पर राजवीर सिंह मंत्र जी,मीना भट्ट जी,छगनलाल विज्ञजी,गुणवती गार्गी जी,बाबा कल्पनेश जी,सुनील कुमार अवधिया जी,महालक्ष्मी मेधा जी,भावना दीक्षित जी,भारती वर्मा जी,हरीष विष्ट जी,आरती डोंगरे जी,राजेश कौरव जी,ने बहुत सारगर्भित समीक्षा कर इस विशेषांक की सराहना की शुभकामनाएं दी।अत्यंत खुशी की बात ये है कि इसका विमोचन तिनसुकिया असम में वार्षिकोत्सव में होनें वाला है जो मनोहारी दृश्य होगा ये विशेषांक हिंदी साहित्य में निश्चित नई कीर्तिमान हासिल करेगा,विशेषांक की बेहतरीन समीक्षा आद आरती डोंगरे जी कुछ इस ढंग से की
छंदोत्सव विशेषांक-छंद वास्तव में कविता का प्राण ही तो है जैसे बिना प्राण के जीवन मृतप्राय है वैसे ही छंद बिन कविता।छंदोबद्ध काव्य सृजन मन को उल्लासित ,आनंदित करता है वही एक लय बद्ध रचना बरबस ही जिव्हा पर स्वर बिखेरने लगती है।”छंदोत्सव विशेषांक”अपने आप मे एक अनूठी कृति तो है ही इसकी रचनाए मन को आनंद से सरो
बार करती बरबस अपनी ओर आकर्षित करती है।इस तरह के आयोजन का बीड़ा
उठाना ये संगम में ही सम्भव है। आ0 नवीन कुमार जी ने इस कार्य को अपने संयोजकत्व में बड़ी ही सादगी एवम आकर्षक रचनाओं में पिरोकर एक सुमधुर वेणी का जुड़ाव किया है।इसके आमुख लेखन,मुखपृष्ठ की सजावट बड़ी ही आल्हादित करने वाली है।शुभकामनाए संदेश आ0 मीना दीदी,चंद्रपाल सिंह जी,विजेन्द्र सिंह जी ,राजीव जी आ0 राजवीर सिंह जी इन सभी गुणीजनों के आशीष से यह विशेषांक वैसे ही एक उप
लब्धि पा गया।वैसे छंद रचना कुछ हद तक दुरूह माना जाता है क्योंकि यह एक आबन्धित रचना होती है जिसमे मात्रा,वर्ण,यति,लय ,भाव एवम सौंदर्य का संतुलन होना परम् आवश्यक है ।कहा जाता था के जो व्यक्ति अपने जीवन मे जितना अनुशासित होता है वही इस विधा में पारंगत हो सकता है।अर्थात एक अनुशासित रचना जो गागर में सागर समेटे हो छंद की श्रेणी में रखी जा सकती है और ऐसी ही अनेको लगभग 30 रचनाए इस विशेषांक का हिस्सा है।यह अपने आप मे अद्भुत है।बसन्त आधा
रित छंद सृजन हो तब तो सोने पे सुहागा वाली बात सौ टका सही उतरती है।प्रथम पृष्ठ पर शिवेंद्र सिंह जी के दोहे बासंती भाव लिए बड़े ही सरस् बन पड़े है।सन्तोष कुमार जी की चौपाइयों रामायण की याद दिलाती प्रतीत हुई ।आ0 शिवकुमार लिल्हारे जी ने भी बासंती दोहे का उन्मुक्त एवम सजीव चित्रण किया है।आ0 मीना दीदी की गीतिका मन
भावन बसन्त है आया बहुत ही रस से भरी उम्दा भाव लिए गुदगुदाती है।विधाता छंद पर तिवारी जी के भाव भी अत्युत्तम है।प्रेम राजावत जी के दोहे छंद को शिल्प एवम भाव की ऊंचाइयां प्रदान करते नजर आ रहे है वही आ0 इंदु दीदी की वसन्त घनाक्षरी मन मोह लेती है।आ0 वीणा चौधरी दी का वसन्त पिरामिड अपनी अलग ही पहचान लिए आकर्षक भाव सज्जा का उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है।वही सन्तोष प्रजापति जी की चौपाई भी वसंत का गहन भेद लिए अप्रतिम छटा बिखेर रही है।सच कहू तो सभी रचनाए एक से बढ़कर एक इस विशेषांक की शोभा बढ़ा रही है।हमारे हिंदी साहित्य की यह अनुपम देंन है छंद शास्त्र यह न केवल रस से परिपूर्ण है बल्कि यकायक मन को आकर्षित करने एवम जिज्ञासा बढ़ाने वाली विधा है।
आजकल जो कुछ भी कविता या काव्य के नाम पर उन्मुक्त होकर परोसा जाता है वह न केवल उच्छ्रंखलता होती है बल्कि पाठन को एक प्रकार से नीरस ही बनाती है।साहित्य संगम संस्थान इस दिशा में छंदोत्सव जैसे आयोजन कर अपनी एक अनोखी मिसाल कायम कर साहित्य की इस विधा का पुरोधा साबित हो रहा है।ऐसे ही क्षण प्रतिक्षण संस्थान नित नई ऊंचाइयों को छूता रहे एवम इसके गुनी साहित्यकार अपनी लेखनी की धार से इसको गरिमा प्रदान करे ।इन्ही शुभ कामनाओं के साथ। पंचपरमेश्वर द्वार चयनित श्रेष्ठ रचनाकार आरती डोंगरे जी रही जिन्होंने सारगर्भित समीक्षा विशेषांक की समीक्षा की,वहीं अपनी हर रचना पर टिप्पणी करनें हेतु श्रेष्ठ टिप्पणी कार कुमुद श्रीवास्तव रहीं।जिन्हे श्रेष्ठ रचनाकार व श्रेष्ठ टिप्पणीकार से सम्मानित किया गया।