नई दिल्ली|
हमने माननीय प्रधान मंत्री का श्री राम जन्म भूमि संबंधी वक्तव्य देखा.
जन्मभूमि का मामला गत 69 वर्षों से न्यायालयों में चल रहा है तथा इसकी अपील सर्वोच्च न्यायालय में वर्ष 2011 से लंबित है. प्रतीक्षा की यह एक लम्बी अवधि है.
मामला गत 29 अक्टूबर को सुनवाई को आया था किन्तु जिस बेंच को इसे सुना जाना था, तब तक उसका गठन नहीं होने के कारण, उसे माननीय मुख्य न्यायाधीश के पास ही सूचीबद्ध किया गया. त्वरित सुनवाई को नकारते हुए मामले को जनवरी 2019 प्रथम सप्ताह के लिए “सम्बन्धित पीठ द्वारा सुनवाई की तिथि तय करने” हेतु टाल दिया गया.
अब, जब सुनवाई की तिथि तो 4 जनवरी 2019 तय हो गई किन्तु बिना “सम्बन्धित पीठ” के गठन के यह मामला पुन: मुख्य न्यायाधीश के कोर्ट में है. उस दिन की अपीलों के सम्बन्ध में सर्वोच्च न्यायालय कार्यालय की रिपोर्ट कहती है कि कुछ अपीलों में “अपीलकर्ताओं ने मृत रेस्पोंड़ेंट्स के वारिसों को रिकार्ड पर लाने के सन्दर्भ में कोई कार्यवाही नहीं की है….”.
पीठ का गठन अभी तक नहीं हुआ. कुछ अपीलों की प्रकियाएं भी अभी बाक़ी हैं. सुनवाई अभी भी कोसों दूर नजर आ रही है.
सभी पहलुओं के समग्र चिंतन के बाद विश्व हिन्दू परिषद् का स्पष्ट मत है कि हिन्दू समाज से अनंत काल तक न्यायालय के निर्णय की प्रतीक्षा की अपेक्षा नहीं की जा सकती. इसका एक मात्र उचित समाधान यही है कि संसद द्वारा कानून बनाकर भगवान श्री राम की जन्मभूमि पर भव्य मंदिर का मार्ग अभी प्रशस्त किया जाए .
परिषद् अपनी इस मांग के पूरा होने तक लगातार जन-जागरण करती रहेगी.
आगे क्या कदम उठाए जाएं, इस सम्बन्ध में निर्णय, आगामी 31 जनवरी तथा 1फरवरी को प्रयागराज में कुम्भ के पावन अवसर पर होने वाली धर्म संसद में, पूज्य संत करेंगे.
एडवोकेट अलोक कुमार
कार्याध्यक्ष-विश्व हिन्दू परिषद्