जूतों के दिन भी आते हैं

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rambahadur

 

पांव के बिरोध में जूतों ने

कर दी है बगावत
नहीं रहेंगे अब वो पांव में
बदल लिये हैं अपनी भूमिका
अब जूते निशाना बना रहे हैं
तानाशाहों को
गिर रहे धड़ा-धड़ जूते
सिर पे तानाशाहों के
कह रहे हैं जूते इन तानाशाहों से
बचो यदि बच सकते हो तो
वरना हम आ रहे हैं
ताजपोशी करने तुम्हारी
चर्चा हो रही है चहुंओर
सिर्फ और सिर्फ जूतों की ही
छप रहे हैं समाचार पत्रों में
जूतों के किस्से”अकेला” ही
इससे पता चलता है कि जूतों के भी
आते हैं सुख के दिन
#राम बहादुर राय “अकेला”
एम.ए.(हिन्दी, इतिहास ,मानवाधिकार एवं कर्तव्य, पत्रकारिता एवं जनसंचार),बी .एड.
मानवाधिकार कार्यकर्ता एवं स्वतंत्र पत्रकार,
बलिया (उत्तर प्रदेश)

matruadmin

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