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अपनी कृपा की कोर दो वरदान दो वरदान दो |
वागीश वीणा वादिनी करुणा करो करुणा करो |
मुझको अगम स्वर ज्ञान का वरदान दो वरदान दो |
निष्काम हो हर कामना मैं नित करूँ आराधना |
मन का कलुष तम दूर हो वरदान दो वरदान दो |
नव गीत नव लय ताल दो शुचि शब्द का भंडार दो |
शुभ कल्पना साकार हो वरदान दो वरदान दो |
हो विमल मति हो सरल गति शालीनता उर में बसे |
बृम्हासुता ज्योतिर्मया वरदान दो वरदान दो |
हे धवल वसना भगवती विद्या की देवी वंदिता |
हिमराशि सी मुक्ता लड़ी सुर पूजिता आनंदिता |
सम्पूर्ण जड़ता दूर हो वरदान दो वरदान दो |
अपनी कृपा – – – – – – – – – – – – – – – –
हे हंसवाहिनी – – – – – – – – – – – – – – – –
#नाम : मंजूषा श्रीवास्तव
साहित्यिक उपनाम : “मृदुल”
शिक्षा : एम. ए. बी . एड
कार्य क्षेत्र : लेखन
विधा : कविता ,मुक्तक ,दोहा ,हाइकू ,गद्य में लेख ,लघु कथा ,संस्मरण आदि
प्रकाशन : कई साझा संकलन ,विविध पत्र – पत्रिकाओं में
सम्मान : मुक्तक शिरोमणि ,आगमन साहित्य गौरव 2018, रंगोली मातृत्व ममता सम्मान 2017, काव्यसुधा सम्मान , रंगोली साहित्य भूषण सम्मान 2018 आदि
अन्य उपलब्धि : समय समय पर दूरदर्शन एवं आकाशवाणी के साहित्यिक कार्यक्रमो में सहभागिता
वर्तमान पता : म. न. 05, महावीर रेज़ीडेंसी निकट तुलसी कार केयर मांस विहार ,इंदिरा नगर
शहर : लखनऊ
प्रदेश : उत्तर प्रदेश
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Tue Apr 9 , 2019
तेरे जाने से,अब ये शहर वीरान हो गया, तेरे जादू का असर अब जाने कहा खो गया, तेरी पायल की झंकार से, ये सारा शहर जाग जाता था, अब उन झंकारो का खतम नामों-निशान हो गया, बहुत ढूँढ़ा मैनें तुझे मुशाफिरों की तरह, भटकता रहा,छिपता रहा,कायरो की तरह, अब तक […]