बचपन से ही राजनीतिक दलों द्वारा गरीबी हटाओ का नारा सुनाया जाता रहा है।चुनावी मौसम में यह नारा कुछ ज्यादा ही हो जाया करती है। यह बात भी सच है कि इसी मुद्दे पर कई बार सरकारे बनी और गिरी, लेकिन गरीबी जस की तस है? कही कम तो कही ज्यादा? आज की परिस्थितियां और समीकरण बदल चुके हैं। ऐसे में गरीबी का अस्त्र जंग लगे शस्त्र के समान है या बिना जंग के यह वक्त के गर्भ में छिपा है।हाल में गरीबो के लिए एक योजना का ऐलान किया गया है। सरकार बनी तो सबसे गरीब 20 फीसदी परिवारों को 72,000 रुपये सालाना की आर्थिक मदद मुहैया करवाई जाएगी। यह योजना गरीबी पर अंतिम प्रहार के रूप में देखा जा रहा है। लेकिन अर्थशास्त्रियों का आकलन अलग है उनका मानना है यह स्टंड के अलावा कुछ भी नहीं है। उन्होने चिन्ता जाहिर कि है कि इतना पैसा कहां से आएगा और राजकोषीय घाटे से कैसे बचा रहा जा सकेगा?
मौजूदा सरकार सभी क्षेत्रो में सराहणीय कार्य करते हुए लोगो को विश्वास दिलाया है कि यह गरीबों की सरकार है।विभिन्न जन कल्याण कारी योजनाओं के माध्यम से लोगों के दिलों में जगह बनाकर लोकप्रिय साबित हो रही है। लोकप्रियता का आलम यह है कि लोगो को भक्त तक कहा जाने लगा है। शायद इसी का कारण है गरीबी हटाओ योजना। सरकार ने आवास, सामाजिक सुरक्षा, गैस, बिजली और आयुष्मान भारत आदि योजनाओं के जरिए गरीबों का विश्वास जीता है।लोगो को बैंकों से जोडकर खातों में सीधे सब्सिडी जमा कराई है जिससे विचौलियो और भ्रष्टाचार पर मी लगाम लगा है।इन सभी कामो के अलावा किसान की कर्जमाफी और मनरेगा भी हैं। सरकार ने किसान सम्मान निधि योजना के तहत किसानों को जेब खर्च मुहैया करवाने का लक्ष्य तय किया गया है।
देश में इतनी योजनाओं के बावजूद आज तक गरीब क्यों मौजूद है? गरीबी का उन्मूलन क्यों नहीं किया जा सका? गरीब और गरीबी की बुनियादी और सर्वसम्मत परिभाषा तक तय क्यों नहीं की जा सकी है? दर्जनों कमेटियों की रर्पोटें आ चुकी हैं, लेकिन गरीब की परिभाषा तय नहीं हो पाई,
देश की सरकारो ने योजनाओं के जरिए गरीबों की स्थिति सुधारने की कोशिश लगातार की है। 20 फीसदी सबसे गरीब परिवारों का डाटा कौन-सा है? कमेटियों ने गरीब की आय का जो आंकड़ा दिया है, वह सात दशकों के दौरान चलाई गई गरीबी हटाओ मुहिम के बावजूद है।
ऐसे में पैसे बांटकर उनकी काम करने की क्षमता को कम नहीं किया जाएगा।बेहतर होता कि रोजगार के अवसर पैदा की जाती काम दिए जाते, उत्पादन बढाये जाते, प्रोत्साहित किये जाते और लोगो को हुनरमंद बनाए जाते तो शायद मौजूदा घोषणाओं से कही ज्यादा कारगर होता।और दलों को फायदा भी।ऐसे घोषणाओं से देश पंगु और ठगा हुआ महसूस करने लगा है।
पंगु से मेरा मतलब बिना काम के पैसे मिलने लगेगे तो कोई काम क्यों करेगा? ऐसे में वह पंगु ही बनकर रह जाएगा। इस तरह की नीतियाँ समाजिक केंसर पैदा करेगी जो देश की आबादी को कामचोर बनाएगा साथ हीं उत्पादन और रफ्तार को भी प्रभावित करेगा फलतः एक शून्य उत्पन्न होगा जिसे आने वाले दिनो में भरना मुश्किल होगा।
“आशुतोष”
नाम। – आशुतोष कुमार
साहित्यक उपनाम – आशुतोष
जन्मतिथि – 30/101973
वर्तमान पता – 113/77बी
शास्त्रीनगर
पटना 23 बिहार
कार्यक्षेत्र – जाॅब
शिक्षा – ऑनर्स अर्थशास्त्र
मोबाइलव्हाट्स एप – 9852842667
प्रकाशन – नगण्य
सम्मान। – नगण्य
अन्य उलब्धि – कभ्प्यूटर आपरेटर
टीवी टेक्नीशियन
लेखन का उद्द्श्य – सामाजिक जागृति