हे ! नव संवत् है तुम्हारा अभिनंदन,
ब्रह्म जी ने किया चैत्र में सृष्टि सृजन।
चैत्र का महीना,वर्ष प्रतिपदा का दिन,
अयोध्या के राजा बने दशरथ नंदन।।
हे ! नव संवत् क्या करुं मैं गुणगान,
होय पहले ही दिन शक्ति का आह्वान।।
गुड़ी पड़वा दिन विजय ध्वज फहरे,
लिए नव उमंग-ऊर्जा,नव पल्लव-धान।।
हे ! नव संवत् तुम-सा नहीं कोई दूजा,
इसी दिन विक्रम संवत् चहुंओर गूंजा।।
मंदिर-मंदिर आरती जले दीप अखंड,
माँ दुर्गा,गणगौर माता की होय पूजा।।
हे ! नव संवत् दो जन-जन को बुद्धि,
परहित के भावों की हो अभिवृद्धि।।
मंगलमय हो भूमंडल,घर-आंगन,
गणपति पधारे संग ले रिद्धी-सिद्धि।।
#गोपाल कौशल
परिचय : गोपाल कौशल नागदा जिला धार (मध्यप्रदेश) में रहते हैं और रोज एक नई कविता लिखने की आदत बना रखी है।