बादल बना है फिर सवाली

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salil saroj
बादल बना है फिर सवाली
आसमाँ क्यों खाली-खाली
किसने लूटा है गुलिस्तां को
बिखरा हुआ है डाली-डाली
किस-किस से करे हिफाज़त
डरा हुआ हर माली-माली
चाँद खा गया सेंक के कोई
रात रह गई काली-काली
उम्मीदें मर गईं चिल्ला के
खूँ से भरा है थाली-थाली
मंदिर-मस्जिद तोड़-ताड़ के
अब बोलते हैं आली-आली
कीमतें तय की हर चीज़ की
और नोट मिले जाली-जाली
खुद ही बोलते,खुद ही सुनते
खुद ही बजाते ताली-ताली
ये भी हद है नारेबाजी की
वायदे पड़े हैं नाली-नाली
बातें हो गईं बन्द कभी की
ज़ुबानें हो गईं गाली-गाली
#सलिल सरोज
परिचय : सलिल सरोज जन्म: 3 मार्च,1987,बेगूसराय जिले के नौलागढ़ गाँव में(बिहार)। शिक्षा: आरंभिक शिक्षा सैनिक स्कूल, तिलैया, कोडरमा,झारखंड से। जी.डी. कॉलेज,बेगूसराय, बिहार (इग्नू)से अंग्रेजी में बी.ए(2007),जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय , नई दिल्ली से रूसी भाषा में बी.ए(2011), जीजस एन्ड मेरी कॉलेज,चाणक्यपुरी(इग्नू)से समाजशास्त्र में एम.ए(2015)। प्रयास: Remember Complete Dictionary का सह-अनुवादन,Splendid World Infermatica Study का सह-सम्पादन, स्थानीय पत्रिका”कोशिश” का संपादन एवं प्रकाशन, “मित्र-मधुर”पत्रिका में कविताओं का चुनाव। सम्प्रति: सामाजिक मुद्दों पर स्वतंत्र विचार एवं ज्वलन्त विषयों पर पैनी नज़र। सोशल मीडिया पर साहित्यिक धरोहर को जीवित रखने की अनवरत कोशिश।पंजाब केसरी ई अखबार ,वेब दुनिया ई अखबार, नवभारत टाइम्स ब्लॉग्स, दैनिक भास्कर ब्लॉग्स,दैनिक जागरण ब्लॉग्स, जय विजय पत्रिका, हिंदुस्तान पटनानामा,सरिता पत्रिका,अमर उजाला काव्य डेस्क समेत 30 से अधिक पत्रिकाओं व अखबारों में मेरी रचनाओं का निरंतर प्रकाशन। भोपाल स्थित आरुषि फॉउंडेशन के द्वारा अखिल भारतीय काव्य लेखन में गुलज़ार द्वारा चयनित प्रथम 20 में स्थान। कार्यालय की वार्षिक हिंदी पत्रिका में रचनाएँ प्रकाशित।

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