स्वभाषा के महत्व को जब तक नहीं समझा जाएगा तब तक उसका विकास संभव नहीं है। इंग्लॅण्ड भी जब फ्रांसीसियों के शासन में था तब अंग रेजी केवल बोलने वाली भाषा थी। अंगरेजी तब ही प्रतिष्ठापित हुई जब वह ज्ञान विज्ञानं की भाषा हुई। हिंदी विश्व में तीसरे नंबर पर सबसे अधिक बोलने वाली भाषा है पर प्रतिष्ठापित नहीं है, जब कि जापान , जर्मनी को बोलने वालों की संख्या कम है पर वे प्रतिष्ठापित हैं क्योंकि वे ज्ञान विज्ञान की भाषा हैं। मैंने हिंदी में चार पुस्तकें क्षय किरणों, न्यूट्रॉन एवं गामा किरणों द्वार चिकित्सा ; पर्यावरण एवं विकिरण ; एटम की कहानी एवं आध्यात्मिक चिंतन का वैज्ञानिक दृष्टिकोण लिखी हैं। पहली पुस्तक प्रकाशित हो गयी है और बाकी तीन प्रकाशित हो रही हैं। ऐसे लेखन से ही हिंदी ज्ञान विज्ञानं की भाषा प्रतष्ठापित होगी।
#डॉ विजय कुमार भार्गव परमाणु ऊर्जा विभाग से सेवानिवृत वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी