आज की भाग दौड़ भरी जिन्दगी के बीच गंगा किनारे जाना और घंटो बैठकर लहरों को निहारना उसके सुन्दर दृश्यों को अनुभव करना अपने आप में एक अलग ताजगी का एहसास कराता है मैं लगभग रोज ही गंगा तट पर जाया करता था लेकिन अब रूटीन बिगड गया है। प्रायः काम की व्यस्तता की वजह से आज मैं घर से ही सोचकर चला कि शाम में कुछ घंटे तट पर बैठूगा।वहाँ पहुँचकर अतीत से तुलनात्मक विमर्श दिमाग में चलने लगा।कैसे यहाँ समय-समय पर भव्य मेला का आयोजन होता था लोग दूर दराज से आते थे और पवित्र गंगा में डूबकी लगाते पूजा अर्चना करते। अब तो घारा भी दूर दिखाई देती जैसे रास्ते बदल गये हों।दूर तक नदी किनारे भी बडी-बडी बिल्डिंग दिखाई पडती है इस किनारे पर सिर्फ बरसात के दिनो मे घारा आती है नदी का दूर होना बदस्तूर जारी है गाद की समस्या ने प्रवाह की दिशा बदल कर रख दी नतीजा दूर पैदल चलकर मुख्य घारा में जाना होता है।इन्ही विचारों में खोया हुआ मैं तट पर पुरानी यादो का स्मरण कर सोच रहा था कि वह कितना प्यारा शाम का समय हुआ करता था ,ठीक प्रायः गोधुलि वेला से दो घड़ी पहले का प्रहर, अपने आप में बहुत सारी रोचकता को समेटे हुए मैं गंगा के किनारे बैठकर लहरों से अठखेलियाँ करती सूर्य की मध्यम रोशनियों में निहारता रहता था, घाटो पर बनी हुई सीढ़ियाँ में उतरना तो ऐसा प्रतीत होता था मानो वो गंगा नदी नही पवित्रता की समृद्ध और सर्वव्यापी संसार में कदम रख दिया हूँ और एक आज का समय है किनारा वही नदी वही पवित्रता गुम सी हो गयी। घाटो के इर्द गिर्द गंदगी का अंबार पडा है साफ सफाई का नामो निशान नही बस दो चार कचरे बिनने वाले जरूर वहाँ आ जाते हैं पानी भी अब पहले जैसी निर्मल नही वो मीलो की गंदगी और शहरो की गंदगी जबसे गंगा में गिरने लगी पानी को दूषित किये जा रहा।गंगा अस्तित्व है समाज की स्वच्छता की आस्था की गंगा प्रतीक है संस्कार की सौहार्द की संस्कृति की और तो और गंगा मुख्य स्त्रोत है जल का ऐसे प्रदूषित गंगा से हम जीवन और लोक आस्था की कल्पना कैसे कर सकते हैं।न जाने कितनी सरकारे आयी और गयी पर गंगा को सबने ठगा है करोडो करोड़ खर्च भी हुए पर नतीजा क्या निकला आज इस विकट परिस्थति को देखकर मै
वहां किनारे बैठा भाव विहोर हो रहा था। सहसा किसी ने एक छलाँग लगाई और ध्यान तोड़ा मैं अब आस पास के वातावरण के बारे में सचेत हुआ।गंगा के मछुआरे अब अपने घर लौट रहे थे वे डाल्फिन को गाय के समान पूज्य समझते हैं और इसे कभी मारते नहीं हैं । नदी के बीच में तैरती हुई नाव, को देख रहा था जो मध्यम पड़ती रोशनीयो में एक अलौकिक दृश्य बना रहा था दूर होते सूर्य अस्त होने को था आह! क्या आँखो को सुख सा प्रतीत हो रही थी ।जैसे वो दृश्य कह रही हो, सब ठीक हो जाएगा और सब अच्छा होगा ।ऐसी भावनायें मन में प्रबल उत्साह का संचार करती है ।गंगा साक्षी है जीवन के आरंभ की, अनेक छोटी -बड़ी खुशियों की, नव-विवाहित जीवन के प्रारंभ की और जीवन की अंतिम यात्रा का भी।एक ऐसी माता जो सुख-दुख में हमेशा भागीदार रहती
है । उदासी में, या प्रसन्नचित्त में, आशीर्वाद लेते वक्त, या फिर पर्व त्योहार में, गंगा खुले मन से सम्मिलित होती हैं अब धीरे-धीरे अंघेरा गहरा होने चला था दूर जाती हुई नाव मन में एक अनजाना रहस्य का भाव पैदा कर देती । नाव में जलती एक मद्धम सी रोशनी कई-कई बातें कहती सी लगती थी कुछ जीवन के इस पार की, और कुछ उस पार की।
मैं भी वहाँ से उठकर हाथ पैर घोने के बाद घर की तरफ चलने लगा कुछ शकुन सा और हल्का महसूस कर रहा था। नदी किनारे की फ्रेश हवा ताजगी और एक प्राकृतिक ऊर्जा उत्पन्न करती है जिसका एहसास मै करता रहा हूँ ।कितनी भी गर्मी हो अगर आप नदी के किनारे चले जाए तो गर्मी का एहसास कम हो जाता है चिन्तन करने के लिए भी नदी का किनारा उपर्युक्त माना गया है । लेकिन आज नदी अपने अस्तित्व को लेकर लगातार चिंता का शबब बना हुआ है बढता शहरीकरण शहर का बढता दायरा जनसंख्या का बोझ और सारे गंदगी को नदी मे गिराने की परम्परा जिस पर रोक लगाने की सख्त जरूरत है ।
“आशुतोष”
नाम। – आशुतोष कुमार
साहित्यक उपनाम – आशुतोष
जन्मतिथि – 30/101973
वर्तमान पता – 113/77बी
शास्त्रीनगर
पटना 23 बिहार
कार्यक्षेत्र – जाॅब
शिक्षा – ऑनर्स अर्थशास्त्र
मोबाइलव्हाट्स एप – 9852842667
प्रकाशन – नगण्य
सम्मान। – नगण्य
अन्य उलब्धि – कभ्प्यूटर आपरेटर
टीवी टेक्नीशियन
लेखन का उद्द्श्य – सामाजिक जागृति