बिटिया भी चिड़ियाँ होती है
पर पंख नहीं होते उनके
दो जगहों का सुंदर रिश्ता
मायका, ससुराल
पर घर नहीं होते उनके ।
जनम दिया जिस मात – पिता ने
कहते बेटी तो परायी है
ससुराल में जब जाती बेटी
सास – ससुर कहते …..
ये तो परायी घर से आयी है ।
ईश्वर से यह प्रश्न है मेरा
किस घर के लिए मुझे बनाया है……
माइका व ससुराल का रिश्ता
परायी और पराया है ।
पक्षी भी दाना चुगने को
दूर देश को जाते हैं
संध्याकाल हो जाने पर
वापस अपने घर आ जाते है ।
क्यों बेटी का इस दुनियां में
करता कोई खयाल नहीं
पिता के घर की वही लाडली
ससुराल में कितना अपमान सहे ।
किस घर को बेटी अपनाये
जिस घर में जन्म हुआ उसका
या फिर उस घर को अपनाये
जहां पिता ने उसका कन्यादान किया ।
परिचय-
नाम -डॉ. अर्चना दुबे
मुम्बई(महाराष्ट्र)
जन्म स्थान – जिला- जौनपुर (उत्तर प्रदेश)
शिक्षा – एम.ए., पीएच-डी.
कार्यक्षेत्र – स्वच्छंद लेखनकार्य
लेखन विधा – गीत, गज़ल, लेख, कहाँनी, लघुकथा, कविता, समीक्षा आदि विधा पर ।
कोई प्रकाशन संग्रह / किताब – दो साझा काव्य संग्रह ।
रचना प्रकाशन – मेट्रो दिनांक हिंदी साप्ताहिक अखबार (मुम्बई ) से मार्च 2018 से ( सह सम्पादक ) का कार्य ।
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काव्य स्पंदन पत्रिका साप्ताहिक (दिल्ली) प्रति सप्ताह कविता, गज़ल प्रकाशित ।
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कई हिंदी अखबार और पत्रिकाओं में लेख, कहाँनी, कविता, गज़ल, लघुकथा, समीक्षा प्रकाशित ।
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दर्जनों से ज्यादा राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रपत्र वाचन ।
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अंर्तराष्ट्रीय पत्रिका में 4 लेख प्रकाशित ।