न पढ़ने की सजा

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rambhawan
सूरज और चंदा पढ़ने तो साथ ही जाते थे और साथ ही घर पर भी आते थे,परन्तु चंदा जहाँ घर पर पहुंचते ही घर के कामों में हाथ बँटाना शुरू कर देती,वहीं सूरज अपने सहपाठी बच्चों के साथ क्रिकेट खेलने चला जाता और देर रात को ही घर पर आता था। घर आने पर कहता कि-‘आज मैं खाना नहीं खाऊँगा ?’ घर भर मिलकर जब उसकी चिरौरी करते,तब कहीं जाकर वह अपनी रोजाना की नौटंकी बंद कर खाना खाता था। वहीं चंदा सबको खिलाने-पिलाने और सुलाने के बाद ही सोने जाती थी,बेचारी लड़की जो ठहरी।
बाबू लोग तो बाबू साहब ही होते हैं,माता-पिता के बहुत डांटने और फटकारने पर कभी-कभी सूरज जिदवश पूरी रात पढ़ता ही रहता था,जबकि चंदा बेटी सबसे पहले जागती और सबसे बाद ही सोती थी।
दोनों भाई-बहन ने हाईस्कूल की परीक्षा भी साथ-साथ दी और उनका परीक्षा-फल भी साथ-साथ आया,मगर जो साथ-साथ नहीं आया-वह था उन दोनों के परीक्षा में प्राप्तांक।
एक तरफ चंदा जहाँ विद्यालय में प्राविण्य बनकर रातों में भी चमक रही थी, तो दूसरी तरफ सूरज दिन में भी बादलों की ओट में अनुत्तीर्ण यानि धुँधला हो चुका था ।
अब यह स्वाभाविक-सी बात है कि,घर द्वार नात-बात और समाज में चंदा को सभी लोग सम्मान की दृष्टि से देखते और चर्चा करते कि-‘अगर यह लड़का होती तो और भी अधिक अंक प्राप्त कर सकती थी,बेचारी को पढ़ने का समय भी तो नहीं मिलता था? फिर शाला में प्राविण्य आना सबके वश की तो बात है नहीं?,वहीं इसका बड़ा भाई सूरज दिन भर लफंगों की तरह घूमता है,इसलिए तो अनुत्तीर्ण हो गया है।’
विद्यालय के प्रधानाध्यापक रामराज चौरसिया जब सम्मान समारोह में चंदा को उसके माता-पिता और बड़े भाई के सामने शाला प्राविण्यता की ट्राफी दे रहे थे,तब चंदा रोती हुई बोली-‘गुरूजी,इस ट्राफी के असली हकदार हमारे भैया सूरज ही हैं,जो समाज के भूखे भेड़ियों की बुरी नजरों से बचते-बचाते हुए हमारी ऊँगली पकड़कर स्कूल ले जाते और घर ले आते थे,वह हमारे लिए कवच थे।
वरना मैं आज भी घर-परिवार में चौका-चूल्हा तक ही सिमटकर रह जाती?और सम्मान तो हमारे माता-पिता जी को मिलना चाहिए जो भले गूढ़,गँवार और गरीब हैं,मगर हिम्मत किसी भी अमीर से कम नहीं रखते हैं। गांव के बहुत से पढ़े-लिखे लोग और लुगाई पिताजी-माताजी को समझाते हुए कहते थे कि- ‘अपने सयान लड़की के स्कूल जानि भेजिहा, नईत ऊ बिगड़ जाई?अपने साथे गाँव जवार नात-बात और समाज,सबक नाक कटवा दी ई बुजरी। हाँ,हम पहिले से ही समझा देत बानी,फिर जनि कहिया कि हमके केहु समझवल काँहें नाहीं ?’
कहते हुए चंदा चुप हो गई,मानो सम्मान समारोह में बैठे सभी सम्मानीय सज्जनों से पूछ रही है कि,आज एक बेटी को विद्यालय में उच्च आने पर जिस प्रकार आप लोग सीना तान रहे हैं,आप ही लोगों में कुछ भूखे भेड़ियों के भय से हमारी और भी बहनें विद्यालय का मुँह नहीं देख पा रहीं हैं? मानो समाज भी चंदा के तेज के आगे नतमस्तक और कान्तिहीन हो गया था।
विद्यालय के सभी गुरूजनों की आँखों में भी अश्रुधारा बह रही थी। पहली खुशी की कि,आज हमारे विद्यालय में भारत की एक बेटी ने ऊँचाई हासिल की है,दूसरे दुख के वे आँसू थे,कि जिस बाप के पास बेटियाँ थी कि-‘काश! अगर हम सभी लोग सभी लड़कों  की भाँति सभी लड़कियों को भी वही सुख-सुविधा  देते तो लड़कियाँ भी आसमान को छू सकती हैं-जैसे चंदा ने आज कर दिखाया है।’
अपनी आँखों को पोंछते हुए गुरूजी  ने फिर  पूछा कि -‘अच्छा बेटी एक बात बताओ,तुम पढ़ती कब थी,और सोती कब थी,हम सबके मन में यह यक्ष प्रश्न  बना हुआ है?’
‘गुरूजी घर-भर के सभी लोगों के सो जाने बाद मैं भी घर के लोगों को  दिखाने के लिए सो जाती थी।फिर जब यह देखकर निश्चिंत हो जाती थी कि सब निंद्रा देवी के आगोश में चले गए हैं,तब मैं अपनी पाठ्य पुस्तक खोलकर पढ़ती- लिखती थी। फिर सबके जागने के पहले सो जाती थी।’ चंदा ने अपनी दिनचर्या समझाते हुए कहा। इस बात को सुनकर सबने अपने दाँतों तले अंगुली दबा ली।
    उधर सूरज अपनी कुर्सी पर चिपक  कर फफक-फफक कर रो रहा था।अपने आपसे मानो कह रहा था-अभी  से मैं भी पढूँगा,जिससे मैं अपनी छोटी बहन की आगे की पढ़ाई पूरी कर सकूँ। अगर  मै नहीं पढूँगा तो हमारी छोटी बहन अकेले  शहर में कैसी पढ़ेगी और उसका सपना कैसे पूरा होगा? इसलिए अब हमें अपने लिए  न  सही,लेकिन अपनी बहन के लिए पढ़ना ही होगा। मानो वह अपने मन में संकल्प कर चुका था और समाज की नजरों मे गिरकर न पढ़ने की सजा भी पा चुका था।
                                                                                        #रामभवन प्रसाद चौरसिया 
परिचय : रामभवन प्रसाद चौरसिया का जन्म १९७७ का और जन्म स्थान ग्राम बरगदवा हरैया(जनपद-गोरखपुर) है। कार्यक्षेत्र सरकारी विद्यालय में सहायक अध्यापक का है। आप उत्तरप्रदेश राज्य के क्षेत्र निचलौल (जनपद महराजगंज) में रहते हैं। बीए,बीटीसी और सी.टेट.की शिक्षा ली है। विभिन्न समाचार पत्रों में कविता व पत्र लेखन करते रहे हैं तो वर्तमान में विभिन्न कवि समूहों तथा सोशल मीडिया में कविता-कहानी लिखना जारी है। अगर विधा समझें तो आप समसामयिक घटनाओं ,राष्ट्रवादी व धार्मिक विचारों पर ओजपूर्ण कविता तथा कहानी लेखन में सक्रिय हैं। समाज की स्थानीय पत्रिका में कई कविताएँ प्रकाशित हुई है। आपकी रचनाओं को गुणी-विद्वान कवियों-लेखकों द्वारा सराहा जाना ही अपने लिए  बड़ा सम्मान मानते हैं।

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।