सज गई है अयोध्या सारी,
मन की अयोध्या मनुज सजा लो।
जो तुम कर सके निर्मल काया,
प्रभु दरश स्वयं तुम पालो।
भक्त हृदय संग कण-कण में तो,
प्रभु सदा ही रहते हैं।
राम नाम जो सुमिरन कर ले,
उनको मुक्ति देते हैं।
मात-पिता और गुरुजनों का,
जो भी आदर करते हैं।
हाथ पकड़कर साथ में रह प्रभु,
उनके काज बनाते हैं।
दीन-दुखी को हृदय लगाकर,
भ्रातृप्रेम जो करते हैं।
ऐसे सुधीजनों पर प्रभु जी,
अपनी प्रीत दिखाते हैं।
तुलसी मानस में तो प्रभु जी,
शब्द-शब्द में बसते हैं।
घर-घर में मर्यादा बनी रहे,
स्वयं सीख प्रभु देते हैं।
प्राण प्रतिष्ठा है रामलला की,
सारा जग राम मय है।
धरती, अंबर और बयार भी,
बोले राम कण-कण में हैं।
#सीता गुप्ता
दुर्ग, छत्तीसगढ़