#शशि मित्तलसरगुजा (छत्तीसगढ़)
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कल -कल करती अविरल
जल की धारा…
पर्वत से झरती
पावन धारा…
पशु -पक्षियों की प्यास बुझाती ,
प्रकृति का सुंदर श्रृंगार करती !
स्वच्छ ,निर्मल ,निश्चछल ,चंचल ,
बहती जाती …
झाग बनाती जैसे दुग्ध धारा
कल कल…………….
आकुल -व्याकुल -सी हो रही ,
कोई काव्य रचने को मचल रही !
झरझर -कलकल -छलछल.स्वर
संगीत सुनाती प्यारा प्यारा
कल कल……….
कला व संस्कृति का संगम ,
विलक्षणता भी खूब भरी..
शाश्वत -सी रागिनी…
रग -रग मे रस उड़ेल रही
संदेश सुनाती जग को सारा
कल कल…………..
जीवन है अनमोल ..
ये संदेश बिखेर रही !!
चंचल ,निश्चछल बहती..
पाषाणों से कभी ना डरती
कष्ट सहना सिखाती धारा
कल कल………..
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