मुझे हर पल तेरा बिछड़ना बहुत याद आता है
खुदा ना खास्ता वो मिलना अब रूलाता है
हमने ऐसे ही गुजारा जो वक्त तनहा का
आज मुझको वो गुजरा जमाना काट खाता है ।
ऐसा सुनती हुँ जहाँ में हमारी चर्चा है
आज अपना वो अफसाना बहुत याद आता है ।
कभी हमने भी मुस्कराया देखकर ऐनक
सुना है तुमको भी अपना याराना याद आया है ।
गयी अब बात वो जब मिलते हम छुप छुप के
हर एक आहट से डरके सिमट जाना बहुत याद आता है ।
बड़ा रहम दिल है तु मेरे परवर दिगार
चलायें ठंडी बयारें तो पास आना बहुत याद आता है ।
अब तो यादें ही रह गयी उन समाओं का
कभी तेरा हँसना मेरा चिढ़ना बहुत याद आता है ।
जब कभी सोचती हूँ मैं गत लमहों को
तब तो खुब रोना और रूलाना बहुत याद आता है ।
तुझको पाना मेरे नसीब में नहीं शायद
अब तो तेरे वादें ही तन्हाई में बहुत सम्बल दिलाता है ।
परिचय-
नाम -डॉ. अर्चना दुबे
मुम्बई(महाराष्ट्र)
जन्म स्थान – जिला- जौनपुर (उत्तर प्रदेश)
शिक्षा – एम.ए., पीएच-डी.
कार्यक्षेत्र – स्वच्छंद लेखनकार्य
लेखन विधा – गीत, गज़ल, लेख, कहाँनी, लघुकथा, कविता, समीक्षा आदि विधा पर ।
कोई प्रकाशन संग्रह / किताब – दो साझा काव्य संग्रह ।
रचना प्रकाशन – मेट्रो दिनांक हिंदी साप्ताहिक अखबार (मुम्बई ) से मार्च 2018 से ( सह सम्पादक ) का कार्य ।
- काव्य स्पंदन पत्रिका साप्ताहिक (दिल्ली) प्रति सप्ताह कविता, गज़ल प्रकाशित ।
- कई हिंदी अखबार और पत्रिकाओं में लेख, कहाँनी, कविता, गज़ल, लघुकथा, समीक्षा प्रकाशित ।
- दर्जनों से ज्यादा राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रपत्र वाचन ।
- अंर्तराष्ट्रीय पत्रिका में 4 लेख प्रकाशित ।