#नीरज त्यागीग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश )
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वो उड़ती पतंग सा बचपन जो था,वो कहाँ गया।
वो जो बिन मौसम होती बरसात , वो कहाँ गयी।।
छोटी – छोटी चीजो की वो चाहत जाने कहाँ गयी।
वो अपनी बात मनवाने की आदत जाने कहाँ गयी।
गुजरते हुए वक्त में सब सपने जैसे कहीं खो से गये।
वो जिनकी होती थी कभी चाहत,वो सब खो से गये।।
छोटा सा पौधा देखो तो कितना सुंदर नजर आता है।
जैसे जैसे बढ़ने लगता है,कितना ठूंठ सा हो जाता है।।
जीवन की सच्चाई कहाँ इससे जुदा होती है।
बच्चे से जैसे ही हुआ इंसान बडा, पता
नही खुद को समझता खुदा क्यों है।।
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