चुनावी व्यंग्य दोहे

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sandeep srajan
दिन प्रतिदिन चढ़ने लगा, राजनीति का रंग।
विनम्र ,अनुशासित हुए ,नेताजी के ढंग ।।
हाथ जोड़ नेता खड़े, जनता है हैरान ।
किसे दिलाए विजय श्री, हर एक परेशान।।
बड़े घोषणा पत्र है, दिन के स्वप्न समान ।
बातों की बाजीगरी,भटकाती है ध्यान ।।
कहते सभी चुनाव में, होगी पक्की जीत ।
हम पिलर कंक्रीट बने, बाकी गारा भीत ।
खुद के झंड़े,ढोल ले , निकले है बाजार।
नेताजी कर जोड़ कर, करवाते सत्कार ।।
नेता आया देख कर, खोले घर के द्वार ।
आश्वासन की माल ले, जनता है तैयार ।।
नेताजी के वायदे, ज्यों मरुथल में नीर ।
है बस रेती की चमक, जो मन करे अधीर ।।
विज्ञापन के साथ में, वादों की सौगात ।
जनता के हिस्से रहे, बाद चुनावी बात ।।
या तो है बाजीगरी,  या है कोई चाल ।
मुद्दे अब भी है वही, बीते सत्तर साल ।।
तरह तरह की बात कर, ठोक रहे है ताल ।
सत्ता के इस समर में, शकुनि चलेंगे चाल ।।
बस विकास के नाम पर, सभी मांगते वोट ।
सत्ता की शतरंज पर, वही पुरानी गोट ।।
शब्द पुष्प मुख से झरे,हाथ जोड़ मुस्काय ।
वोटर सन्मुख देख कर, नेता जी हर्षाय ।।
कहीं फूलों की माल है, कहीं फलों के तोल ।
नेताजी मिश्री हुए, जनता शक्कर घोल ।।
चाहत सत्ता की बड़ी,भूले सभी उसूल ।
कल तक पंजा साथ था ,आज कमल का फूल ।।
वोटर की चिंता बढ़ी , किसको दे वो वोट ।
मोच पुरानी है अभी, लगे नहीं फिर चोट ।।
#संदीप सृजन
उज्जैन

matruadmin

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