मैं बैचैन था, रात भर लिखता रहा../
छू रहे थे सब, बुलंदियाँ आसमान की /
मैं सितारों के बीच, चाँद की तरह छिपता रहा //
मैं था नाज़ुक डाली, जो सबके आगे झुकता रहा /
बदले यहाँ लोगों ने, रंग अपने-अपने ढंग से /
रंग मेरा भी निखरा पर, मैं मेहँदी की तरह पीसता रहा //
मैं समन्दर से राज, गहराई से सीखता रहा /
ज़िन्दगी कभी भी ले सकती है करवट /
तू गुमान न कर, बुलंदियाँ छू हज़ार //
मगर उसके लिए कोई, ‘गुनाह’ न कर /
इसलिए कुछ बेतुके झगड़े /
कुछ इस तरह खत्म कर दिए मैंने /
जहाँ गलती नही भी थी मेरी /
फिर भी झुक गया मै औरो के लिए //
मैं बैचैन था, रात भर लिखता रहा..//
#संजय जैन
परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।