युगों युगों से सहते आये नारी की व्यथा करुणा है,
अबला नही अब सबला है ये दुर्गा लक्ष्मी वरुणा है।
द्रौपदी आज बीच सभा चीत्कार रही,
कितनी सारी निर्भया खून
के आसूं बहा रही।
चीर हरण अब रोज होता कृष्ण नही अब आते हैं,
छोटे छीटे मासूम भी हवस की भेंट चढ़ जाते हैं।
अर्जुन बना बृहनलला देखो,भीष्म शैया पर सोते हैं,
विदुर चले अब शकुनि चाल द्रोण
गुरुत्व को खोते हैं।
सीता की अग्नि परीक्षा बीच चौराहे होती है,
कटी नाक शूर्पणखा को प्रतिदिन
लम्बी होती है।
महिषासुर का मण्डन करते रामायण को भूल रहे,
बन्दूक उठा के आज युवा घर
अपना ही फूंक रहे।
अब तो नारी सजग होकर शस्त्रों
का संधान करो,
चंडी काली दुर्गा बनकर नवयुग
का निर्माण करो।
छद्म रखे निर्बलता के बंधन
सारे तोड़ दो,
तूफानों से टकराने को नाव उधर ही मोड़ दो।
मंज़िल तेरी हिम्मत तेरा पथिक व्यर्थ क्यूँ थकता है,
वही सफल जिसको #शमशान की,राख का चूरा लगता है।
निर्भय हो कूद पड़ो समर में चामुंडा अवतार हो,
तोड़ो बन्धन छद्म हया की देश की कर्णधार हो।
थाम लो तलवार अब तुम रानी लक्ष्मी बाई हो,
सुनीता कल्पना गीता जैसी आज
की तरुणाई हो।
तुम आज की तरुणाई हो……..
#अविनाश तिवारी
अमोरा जांजगीर-चांपा छत्तीसगढ