घुटन के साथ तमन्नाओं का जैसे मचलना है,
एक जुगनू का घोर अंधरों में जैसे चमकना है।
एक लकीर-सी खिंची है जो क्षितिज में,
अब उड़कर उसको भी पार करना है।
अपने ही द्वन्द में पछाड़ खाते हैं बार- बार,
लगता है लिखा अपने हाथों ही मारना है।
एक बहरुपिया जो अंदर से वार करता है,
तड़पती भावनाओं से उसे क्या करना है।
दब गए सुमित,अपने ही बनाए घरौंदों में,
अब तो बस अपनों से ही संभलकर निकालना है।
#सुमित अग्रवाल
परिचय : सुमित अग्रवाल 1984 में सिवनी (चक्की खमरिया) में जन्मे हैं। नोएडा में वरिष्ठ अभियंता के पद पर कार्यरत श्री अग्रवाल लेखन में अब तक हास्य व्यंग्य,कविता,ग़ज़ल के साथ ही ग्रामीण अंचल के गीत भी लिख चुके हैं। इन्हें कविताओं से बचपन में ही प्यार हो गया था। तब से ही इनकी हमसफ़र भी कविताएँ हैं।