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एक मित्र ने कहा,
आपको बोलने हेतु
मन में एक बात जगी है,
जाकेट में ऐसे लगते हो
जैसे-जाकेट हेंगर पर टँगी है।
आपको देखो तो जादू होता है,
खड़ा रहता सामने तुम
पण दिखाई नी देता है,
कमाल का चेचिस है तुम्हारा
जित देखो तित से,
एक साँचे में दिखे प्यारा
कुछ लेते क्यों नी ?
मैं बोला,
लेने के लिए क्या बचा है ?
झूठ-फरेब का बाजार सजा है।
सच तड़पता रहता है
लोग लेते मजा हैं।
खाने की चीजों में मिलावट है,
शानो-शौकत की दावत में भी,
चौसर की जमावट है।
रोता पैदा होता है,
उफ़ !
हंसी में भी उसकी बनावट है,
किसको कैसे पहचानें
सभी की सूरत रंगी है,
सोचता बहुत हूँ,
इसलिए ऐसा लगता हूँ,
जैसे जाकेट हेंगर पर टँगी है।
कैसे निभाएं नाते-रिश्ते,
कुटिलता के दुष्चक्र में पिसते
किसी दूषित गैस की तरह ‘रिस’ते,
बढ़ता विद्रोह रिश्तों में
ले विस्फोटक रूप टूट जाते हैं,
बस अपने कहीं,
दूर बहुत दूर,छूट जाते हैं
हो सके तो रिश्तों को जोड़िए,
वरना,छोड़ छदमता-कुटिलता
समझोता कर रिश्तों को छोड़िए,
ताकि रिश्तों की इज्जत बनी रहे,
रिश्तों के प्रति रोष नहीं
दिलों में प्यार व आँखों में नमी रहे,
सुन यह रचना पीछे टँगे चित्र से
वे कह रही,
इन्हीं बातों की तो संसार में
आग लगी है,
इसीलिए तो ऐसे लगते आप,
जैसे जाकेट हेंगर पर टँगी है॥
#सुनील चौरे ‘उपमन्यु’
परिचय : कक्षा 8 वीं से ही लेखन कर रहे सुनील चौरे साहित्यिक जगत में ‘उपमन्यु’ नाम से पहचान रखते हैं। इस अनवरत यात्रा में ‘मेरी परछाईयां सच की’ काव्य संग्रह हिन्दी में अलीगढ़ से और व्यंग्य संग्रह ‘गधा जब बोल उठा’ जयपुर से,बाल कहानी संग्रह ‘राख का दारोगा’ जयपुर से तथा
बाल कविता संग्रह भी जयपुर से ही प्रकाशित हुआ है। एक कविता संग्रह हिन्दी में ही प्रकाशन की तैयारी में है।
लोकभाषा निमाड़ी में ‘बेताल का प्रश्न’ व्यंग्य संग्रह आ चुका है तो,निमाड़ी काव्य काव्य संग्रह स्थानीय स्तर पर प्रकाशित है। आप खंडवा में रहते हैं। आडियो कैसेट,विभिन्न टी.वी. चैनल पर आपके कार्यक्रम प्रसारित होते रहते हैं। साथ ही अखिल भारतीय मंचों पर भी काव्य पाठ के अनुभवी हैं। परिचर्चा भी आयोजित कराते रहे हैं तो अभिनय में नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से साक्षरता अभियान हेतु कार्य किया है। आप वैवाहिक जीवन के बाद अपने लेखन के मुकाम की वजह अपनी पत्नी को ही मानते हैं। जीवन संगिनी को ब्रेस्ट केन्सर से खो चुके श्री चौरे को साहित्य-सांस्कृतिक कार्यक्रमों में वे ही अग्रणी करती थी।
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