खाली

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anupa harbola
गीता जब छुट्टियों में इस बार अपने ससुराल गई तो उसने अपने  देवर को बात-बात पर घर पर सभी पर चिल्लाते हुए पाया।ऐसा लगता था मानो बीबी और माँ पर चिल्लाए बैगर तो उसका खाना ही नहीं पचता।गुस्सैल होने के कारण ही उसने तैश में आकर  एक दिन अपनी लगी लगाई नौकरी छोड़ दी।पिता की पेंशन, बीबी की नौकरी से घर का खर्चा चल रहा था,चल क्या रहा था ज़बरदस्ती खींचा जा रहा था। घर की पहली  मंज़िल में एक कमरा खाली पड़ा था, तो गीता साफ-सफाई करने लगी।थोड़ी देर बाद उसकी सास वहाँ आ गई। दोनों सफाई कर ही रहे थे तो उसका देवर भी वहाँ आ गया।
“कोई और काम नहीं है क्या? जो इस कमरे की सफाई कर रहे हो,” वो बोला।
“तेरी भाभी कह रही है कि इस कमरे को भी किराए पर लगा दो, कुछ और आमदनी हो जाएगी, वैसे भी खाली ही पड़ा है।”
इतना सुनते ही उसने ज़ोर-ज़ोर से गालियाँ देना और चिल्लाना शुरू कर दिया,”हर कोई आ जाता है मुझे जताने कि मैं बेरोजगार हूँ, निठल्ला हूँ, दूसरों की दया पर हूँ, खाली कमरा होने के कारण आवाज़ कर्कश ध्वनि के रूप में इतनी तेज़ गूँजी कि नीचे के कमरे में सोए उसके ससुर भी उठ गए।  ऐसा बोलकर वो तो चला गया पर मम्मी रोने लगी।उनको चुप कराते हुए गीता ने सास को कहा, ” देवरजी को काम की सख्त जरूरत है, खालीपन चाहे कमरे का हो या दिमाग का बहुत चुभन भरी आवाज़ करता है…।”
#अनूपा हरबोला
विद्यानगर (कर्नाटक)

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