ओ अर्द्धरात्रि के उल्लू सुन,
अब जाग भोर हो गई नई..
असली उत्सव आया है अब
नव संवत्सर है,वर्ष नई।
बगिया महकी,चिड़िया चहकी,
कुदरत ने बाँहें फैलाई.
बासंती के आलिंगन को,
बेला बैसाखी की आई।
भीनी खुशबू बागों में है,
कोयलिया गीत सुनातीं है..
मद्धम चलती है पुरवाई,
फसलें सारी लहराती हैं।
मंदिर में सुबह घंटियों से,
स्वागत है आदि शक्तियों का..
आओ कर लें हम परित्याग,
फैली हुईं कुरीतियों का।
पश्चिमी सभ्यता में जकड़े,
अंतर्मन को आजाद करें..
नव वर्ष बधाई दें सबको,
निज गौरव को भी याद करें।
कुछ और आज़ संकल्प करें,
पाखंड को कर दें खंड-खंड..
जो मारे कोख में बेटी को,
उस दानव को दिलवाएं दंड।
ना धंधा बने धर्म का अब,
धेनुएँ सभी खुशहाल बनेें..
आओ मिल पश्चाताप करें,
हम गौरक्षक गौपाल बनेें।
केसरिया पर न दाग लगे,
पश्चिम की कालिख दूर करो..
जिससे पुलकित होता जीवन,
वो कर्मकाण्ड भरपूर करें।
निज स्वारथ में ही जीते हैं,
आओ अब परमारथ कर लें..
चाहे शोणित से धुलना हो,
आओ उज्ज्वल भारत कर लें।
बकवास भूलकर पश्चिम की,
घर-घर में हर्ष मुबारक हो..
मंजूर जिन्हें संकल्प सभी,
उनको नववर्ष मुबारक हो।
#देवेन्द्र प्रताप सिंह ‘आग’
परिचय : युवा कवि देवेन्द्र प्रताप सिंह ‘आग’ ग्राम जहानाबाद(जिला-इटावा)उत्तर प्रदेश में रहते हैं।
Nice word. I appreciate. Keep it.