अपने मन के भावों को,
उद्वेग से उठते बहावों को
मै आज समेट कर हार पिरोना चाहता हूँ
हाँ मै आज कुछ लिखना चाहता हूँ
मेरे अन्दर मची हुई है जो हलचल,
व्याकुल, व्यथा बाहर आने को रही है मचल,
ना ही अपने विचारों का
खुला दरबार लगाना चाहता हूँ
हाँ, मै आज कुछ लिखना चाहता हूँ
चाह नहीं मुझे किसी भी सम्मान की
पर परवाह है मुझे अपने मान की
शान बन पाऊं किसी अख़बार के पनो में ना सही
बस मन को शांत कराना चाहता हूँ
हाँ, मै आज कुछ लिखना चाहता हूँ
न शौक है मुझे किसी से तुलना हो मेरी
बस खुशियों से भरी जिंदगी हो मेरी
इन खुशियों को अपनों के नाम कराना चाहता हूँ
हाँ, मै आज कुछ लिखना चाहता हूँ
मै क्या हूँ, कौन हूँ,जानता हूँ अच्छी तरह,
फिर क्यों लोग मुझे देखते है नए कवि की तरह,
“हर्ष” अपने भावो से एक पहचान बनाना चाहता हूँ,
हाँ ,मै आज कुछ लिखना चाहता हूँ.
#प्रमोद कुमार “हर्ष”