जिस तरह नशा,
शराब में नहीं..
अपने-आप में होता है,
ठीक उसी तरह
मजा किसी वस्तु;
स्थिति या परिस्थिति
में नहीं,अपने-आप में होता है।
जिन्दगी का मजा लेना भी,
एक फन,एक हुनर अदाकारी,
कलाकारी है, जो हर किसी
के बस की बात नहीं है।
उत्सव का आनन्द,
मौसम की मस्ती..
महफिल की रंगीनियां,
रंगों की होली और
और खुशियों की दिवाली
बाहर नहीं,हमारे
ही भीतर है।
चारों तरफ बिखरा,
पड़ा है मजे का साम्राज्य..
जिसने जितना बटोर लिया,
सिर्फ एक वही धनवान है..
बाकी सब कंगाल।
जिन्दगी का मजा,
हर किसी के बस..
की बात नहीं है,
जो ले सकता है..
उसी के लिए जिन्दगी,
एक मजा है वर्ना तो बाकी
सबके लिए ये जिन्दगी..
किसी सजा से कम नहीं है।
(अखबारों की छुट्टी पर सुबह अखबार पढ़ने के खाली समय से उपजी रचना)
परिचय : डाॅ.देवेन्द्र जोशी गत 38 वर्षों से हिन्दी पत्रकार के साथ ही कविता, लेख,व्यंग्य और रिपोर्ताज आदि लिखने में सक्रिय हैं। कुछ पुस्तकें भी प्रकाशित हुई है। लोकप्रिय हिन्दी लेखन इनका प्रिय शौक है। आप उज्जैन(मध्यप्रदेश ) में रहते हैं।