बहुत सालों बाद धनाढय घर की बहू मीरा उम्मीद से है,घर में खुशियों का माहौल है। सब उसे कई सलाहें-बेटा ऐसा मत करना, ऐसा खाओगी तो आने वाला बच्चा गोरा होगा,स्वस्थ होगा और न जाने क्या क्या…दे रहे हैं।
मीरा के साथ ही मोहल्ले में झाड़ू निकालने वाली कला भी उम्मीद से होती है। दोनों के संवाद खिड़की से हुआ करते थे। आज अचानक मीरा की सास उसे हॉस्पिटल ले जाती है स्वास्थ्य परीक्षण का बताकर ,परंतु वास्तव में उसका शिशु का लिंग परीक्षण कराने के लिए..। परीक्षण में ज्ञात होता है कि,मीरा के अंदर पल रहा शिशु कन्या है। यह बात सुनकर घर में मातम-सा छा जाता है,और तैयारी शुरू होती है मीरा की बच्ची को मारने की..। मीरा सबसे विनती करती है कि,मुझे मेरी बच्ची को नहीं मारना लेकिन इसमें न उसका पति साथ देता है,न ही उसके घर वाले..यहाँ तक कि, उसकी माँ भी साथ नहीं देती है। वो अपनी माँ और सास को कहती है- सासू माँ,आपकी भी तो बेटी है और माँ भी..तुम्हारी बेटी हूँ तो आप मेरी बेटी को जन्म क्यों नही लेने दे रही हो? सास गुस्से में तमतमाते हुए बोली-लड़की को जन्म देना है तो मेरे घर से निकल जा। अगर तू लड़की को नहीं गिराएगी तो हमारे घर में तेरे लिए जगह नहीं रहेगी।
मजबूरन मीरा को अपनी बेटी को गिराना पड़ता है..इसके बाद कला और मीरा का खिड़की संवाद भी बंद हो गया..। फिर कुछ दिन बाद कला गोद में अपना शिशु देती है,तो उसे देख मीरा अपना सारा गम भूल जाती है। वो अपनी बच्ची के अवसाद से बाहर आ जाती है,यह देख उसे उसकी सास से घृणा हो जाती है।
#नेहा लिम्बोदिया
परिचय : इंदौर निवासी नेहा लिम्बोदिया की शिक्षा देवी अहिल्या विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में हुई है और ये शौक से लम्बे समय से लेखन में लगी हैं। कविताएँ लिखना इनका हुनर है,इसलिए जनवादी लेखक संघ से जुड़कर सचिव की जिम्मेदारी निभा रही हैं। इनकी अभिनय में विशेष रुचि है तो,थिएटर भी करती रहती हैं।
katu saty… lajwab likha