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जीवन एक यात्रा ऐसी जिसमे पथ के विषम जाल हैं
कहीं शिखर पद के नीचे तो कहीं गर्त में झुका भाल है
उठा रहा गिरि कहीं विपद् को कहीं पवन को रोक रहा
है एक प्रवाह सनातन चलता काल स्वयं ही झोंक रहा
चलता राही पथ पर अपने साधे निज मंजिल की तान
देता आलिंगन यात्रा में मिलें निशा या मिलें विहान
कुछ भ्रम की बाधायें आती जब यात्रा गतिमय होती है
बुद्धि विचार-द्वंद में अपने कुछ निर्णय की गति खोती है
यहां धीर है वीर स्वयं जो वही प्रबल निर्णय लेता है
साध्य प्राप्ति संभव करने को नयी राह जग को देता है
पर जो हारे द्वंद बेचारे वो भी कुछ तो चुन लेते है
चाह रही हो या न रही हो पर सपने कुछ बुन लेते है
चलती जाती सतत् धार यह सृष्टि चक्र के सरिता की
भंवरों पर चढ घूम रहा है तत्व कोई मदमस्त विलासी
उथल पुथल जो अंतस्थल में शेष वही आधार सृजन का
सृजन कि जो है ध्वंस करता हर युग में इक नये विजन का
कहां खड़ा है जगत आज जो पड़ा हुआ था गत में कल को?
ग्रहण कर रहा काल द्वार से भविष्यत् के हर पल पल को
शेष वही बस यात्रा जो कि बढ़ी जा रही चली जा रही
इक जीवन के बाद नयी बलि समय यज्ञ में चढ़ी जा रही
बलि जो समष्टि हित को चढ़ती परम्परा के परिष्करण को
नाश तिमिर का हो जग से कुछ बुझे कुंड में अग्नि ज्वलन को
इस बलि के ही बल पर जग का घूम रहा हर चक्र प्रगति का
मानवता के उच्च शिखर की ओर उठ रहा पथ अवनति का
चले विश्व जिस पर पग धरकर पहुंचे अपने मोक्ष द्वार तक
खोले पट उत्तर कोषों का पाये सब अंतिम विचार तक
गूंथे स्वयं विचार हार को औ पहनायें जग जेता को
जो यज्ञ अग्नि जीवित रखने को स्वयं जल गया उस नेता को ।
#अनूप सिंह
परिचय : अनूप सिंह की जन्मतिथि-१८ अगस्त १९९५ हैl आप वर्तमान में दिल्ली स्थित मिहिरावली में बसे हुए हैंl कला विषय लेकर स्नातक में तृतीय वर्ष में अध्ययनरत श्री सिंह को लिखने का काफी शौक हैl आपकी दृष्टि में लेखन का उद्देश्य-राष्ट्रीय चेतना बढ़ाना हैl
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