हुनर हो गर सच में खुद को आफ़ताब बना लो
तुझको अदब से पढ़ा करे ऐसी किताब बना लो
आशियाने में सुकून बंटता रहे सुबह-शाम तक
तमाम जिंदगी अपनी चमन का गुलाब बना लो
गुज़रने के बाद भी वजूद हमारा सलामत रहेगा
सफर के लिए मंज़िल को बेचैन ख़्वाब बना लो
अंधेरों से परेशां लोग अब भी मिल जाएँगे तुम्हें
अजनबी की हसरत का चेहरे पर ताब बना लो
जमे हुए मिलते हैं सीने में कितने अनछुए पहलू
खोटे सिक्कों के नाम भी अच्छा जवाब बना लो
शीतल ज़ुबां के संग दिल में झरना भी रखा कर
तपे रहने वालों के वास्ते दरिया तालाब बना लो
नाम:राजीव कुमार दास
पता: हज़ारीबाग़ (झारखंड)
सम्मान:डा.अंबेडकर फ़ेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान २०१६
गौतम बुद्धा फ़ेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान २०१७
पी.वी.एस.एंटरप्राइज सर्वश्रेष्ठ रचनाकार सम्मान १४/१२/२०१७
शीर्षक साहित्य परिषद:दैनिक श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान १५/१२/२०१७
काव्योदय:सर्वश्रेष्ठ रचनाकार सम्मान:०१/०१/२०१८,०२/०१/२०१८,०३/०१/२०१८३०/०१/२०१८,०८/०५/२०१८
आग़ाज़:सर्वश्रेष्ठ रचनाकार सम्मान:२५/०१/२०१८
एशियाई साहित्यिक सोसाइटी सम्मान:१७/०३/२०१८,१६/०४/२०१८,१६/०५/१८
श्री राधेकृष्ण पब्लिकेशन:चित्रपाठी अलंकरण सम्मान:२३/०४/२०१८
उड़ान:सर्वश्रेष्ठ रचनाकार सम्मान:११/०७/२०१८
प्रकाशन:
शब्द अभिव्यक्ति:’नई उड़ान’:वाल्यूम ०१,०२,०३में कविताएँ व अन्य रचनाएँ प्रकाशित।
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