देखो फिर से होली आई है,
संग अपने खुशियां लाई है..
बैर भाव को त्यागने का,
प्रेम संदेशा लाई है…
देखो फिर से होली आई है…।
होकर रंगों में सराबोर,
मिटा दो दिलों की दूरियां..
न हो किसी से कोई रंजो-गम,
चारों तरफ हों बस खुशियां..
छाई चारों तरफ,सुनहरी पुरवाई है,
देखो फिर से होली आई है….।
एक रंग में रंगें हैं सब,
नहीं समझ आता,कौन राम-कौन रहीम है..
अब्दुल के घर बनी गुझिया,
पंडित काका लाए हैं सिंवईया..
जोगिंदर और डेविड खाते रसमलाई हैं,
देखो फिर से होली आई है….।
मंदिर हो न मस्जिद हो,एक ऐसा मुकाम हो,
सुबह जहां हो आरती,वहीं शाम को अजान हो..
नफरत की आग लगाने वाला,
न कोई बेईमान हो।
एक दूजे में बसी,हम सभी की जान हो,
ऐसा इस हनीफ के सपनों का,
भारत महान हो..
यह राम और रहीम की होली है,
यही संदेशा देने होली आई है..
देखो फिर से होली आई है….।
#मोहम्मद हनीफ खान मन्सूरी
परिचय : मोहम्मद हनीफ खान मन्सूरी पत्रकार होने के साथ ही स्थानीय कवि भी हैं। आपने एमएससी(कम्प्यूटर) की शिक्षा प्राप्त की है और विदिशा जिला के श्मशाबाद में रहते हैं। लेखन कार्य छात्र के रूप में प्रारम्भ किया था,जो अब भी जारी है। स्थानीय अखबारों एवं पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हुईं हैं।
बेहद सार्थक समसामयिक और शब्दों की सही माला में गुत्थी गई कविता साधुवाद कवि को