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बूढ़े दरख़्त पहले से ज़्यादा हवादार हो गये
इश्क़ में हम पहले से ज़्यादा वफ़ादार हो गये
उनसे दिल की बात कहने का हुनर सीख लिया
लब-ए-इज़हार पहले से ज़्यादा असरदार हो गये
मालूँम चला मिटटी की दीवार से होते हैं रिश्ते
बाख़ुदा हम पहले से ज़्यादा ज़िम्मेदार हो गये
बोझ हल्का हुआ दीदा-ए-नम में ख़ुशी जो आयी
झूठो-फ़रेब से पहले से ज़्यादा ख़बरदार हो गये
जबसे उजालों के भरम में जीना हमने छोड़ दिया
बक़ौल ‘राहत’ हम पहले से ज़्यादा ख़ुद्दार हो गये
#डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’
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