क्या माँगूं

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chirag
एक दिन फरियाद मेरी सुनकर प्रकट हुए भगवान,
बोले मांग अपनी मर्ज़ी की एक चीज ऐ इंसान।
बहुत हुआ मैं खुश,लगा सोचने क्या माँगूं जो कर दे मेरी ज़िंदगी आसान,
याद आए कुछ अधूरे सपने,पूरा करने के थे जिनके अरमान।
पैसा,कार या बंगला? क्या माँगूं जो पाकर मैं बन जाऊं सबसे महान,
अर्जुन जैसी नज़र माँगूं या बन जाऊं भीम जैसा बलवान?
माँगूं सीता जी जैसी पत्नी या फिर प्रभु श्रीराम जैसी पहचान,
या फिर माँगूं हमेशा सुखी और तंदरुस्त रहने का वरदान।
क्या माँगूं,क्या माँगूं ?
सोचते-सोचते मैं खुश होने लगा और दुनिया पर हँसने लगा,
सबसे बड़ा बनने के लालच में,हवाई किले बनाने लगा।
फिर लगा दिमाग को एक ज़ोर का झटका,
समझ में आई एक बात।
मोह-माया है ये सब दुनिया की,
कैसे देंगी ज़िन्दगी भर ये मेरा साथ।
माँगूं कुछ ऐसा,जो न छोड़े मुश्किलों में भी मेरा हाथ।
क्या माँगू, क्या माँगू ?
खूब सोचा,आया मन में एक ही विचार,
क्यों न माँगूं उसे,जो है इस सृष्टि का पालनहार।
इरादा मैंने अपना मन में पक्के से ठान लिया,
लोग दौलत पर गिरते थे,मैंने भगवान मांग लिया॥
#चिराग बतरा
परिचय: चिराग बतरा का जन्म स्थान- शाहाबाद मारकंडा है। आप राज्य- हरियाणा और शहर-नई दिल्ली से सम्बन्ध रखते हैं। बी. टेक. की शिक्षा लेने के बाद पेशे से सॉफ्टवेर इंजीनियर हैं। लेखन का उद्देश्य सिर्फ आपकी रुचि है।

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