भाषा के लिए दिया धरना

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अंतरराष्ट्रीय `मातृभाषा दिवस` के अवसर पर कोलकाता में जुटे सैकड़ों प्रदर्शनकारियों की यह सम्मिलित आवाज थी-‘हिन्दी बचाओ मंच’ की ओर से ऐतिहासिक कॉलेज स्क्वायर स्थित विद्यासागर पार्क के मुख्य द्वार पर। कलकत्ता विश्वविद्यालय के सामने भोजपुरी और राजस्थानी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग और मनोज तिवारी सहित कुछ सासदों द्वारा दिए गए आश्वासन के प्रतिरोध में विशाल धरना और प्रदर्शन किया गया। इस धरने में पूरे पश्चिम बंगाल से बड़ी संख्या में हिन्दीप्रेमियों,विद्वानों,पत्रकारों,विद्यार्थियों और शिक्षकों ने भाग लिया। धरने में शामिल विशिष्ट विद्वानों ने एक स्वर में मांग की कि,भोजपुरी और राजस्थानी समेत हिन्दी की किसी भी बोली को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल न किया जाए। इससे न केवल हिन्दी कमजोर होगी,बल्कि ये बोलियाँ भी कमजोर होंगी। प्रो. कुमार संकल्प ने कहा कि हिन्दी से उसकी बोलियों के अलग होने से कबीर, तुलसी, सूर,मीरा आदि हिन्दी के कवि नहीं रह जाएंगे। इससे हिन्दी भाषा का जनसंख्या का आधार अचानक बहुत नीचे चला जाएगा,क्योंकि तब भोजपुरी भाषी और राजस्थानी भाषी लोग हिन्दी भाषियों में नहीं गिने जाएंगे और तब एक राजभाषा के रूप में भी हिन्दी पर सवाल उठने लगेंगे। इतना ही नहीं,राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी साहित्य की समृद्धि भी घट जाएगी। डॉ.सत्यप्रकाश तिवारी ने कहा कि, हिन्दी प्रदेश द्विभाषिक प्रदेश है। यहां जो हिन्दी बोलने वाले हैं,वही भोजपुरी,अवधी,राजस्थानी आदि भी बोलते हैं। इन्हें अलग-अलग भाषाई समूह मानकर उनको बाँट देना न तो हिन्दी के हित में है,न राष्ट्र हित में। इस बँटवारे से हिन्दी राजभाषा के पद से भी च्युत हो सकती है और अंग्रेजी का एकछत्र साम्राज्य स्थापित हो सकता है। धरने में शामिल लोगों ने यह संकल्प दोहराया कि,मैथिली को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करके सरकार ने 2003 में जो गलती की उस तरह की गलती हम दुबारा नहीं होने देंगे।प्रदर्शन में प्रो.अरुण होता,डॉ. आशुतोष,डॉ. सत्यप्रकाश तिवारी,डॉ.बीरेंद्र सिंह,डॉ.अर्चना द्विवेदी,डॉ.विनोद कुमार,डॉ.अजीत कुमार तिवारी,डॉ.आसिफ,डॉ.बी.अरुणा,डॉ.हृषिकेश कुमार सिंह,जीवनसिंह,कवि रावेल पुष्प,डॉ.अंजनी रॉय,आरती तिवारी,डॉ.कमलेश जैन,विकास कुमार,कवि रणजीत भारती,नाज़िया खान,पायल सिंह सहित बड़ी संख्या में हिन्दीप्रेमी,विद्यार्थी एवं शिक्षकगण शामिल थे।

साभार-वैश्विक हिन्दी सम्मेलन(मुंबई)

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