1.
बेटी घर की लाडली, माँ बापू को चैन।
दिनकर छाया धूप जिमि, तारा छाई रैन।
2.
बेटी घर की लिच्छमी ,सरस्वती को रूप।
नव दुर्गा का भेष या, जमना गंग सरूप।
3.
बेटी घर की देहरी , दादा दादी साथ।
प्रात नमन दोपहरिया,संध्या बाती हाथ।
4.
बेटी घर की आरती, शान मान अरमान।
कुटम कबीला सेतु बण,धरती अर् असमान।
5.
बेटी घर की रोशनी, धरा करै उजियार।
शिक्षा की सौगात है, प्रगति बने हथियार।
6.
बेटी सृष्टि प्रसारणी ,जग माया विस्वास।
धरती पै इमरत रची, काया साँसो साँस।
7.
बेटी जग दातार भी ,यही जगत आधार।
जग की सेतु समन्द ये,जन मन देवा धार।
8.
बेटी जननि संसार की,धरण अमोलक मोल।
कर्म धर्म संस्कार सत,संस्कृति इक अनमोल।
9.
बेटी खेवन हार है, जग नौका दरियाव।
कुल पालकी शुभदात्री,सत्य सुमंगल भाव।
10.
बेटी प्रकृति धार है ,प्रकृति की बरदान।
प्रकृति की ही उपज है,प्रकृति की अरमान।
11.
बेटी गुण की खान है,त्याग मान बलिदान।
राजधरमतन तीनि को,सत्य शुभ्रअभिमान।
12.
बेटी निज को हनन है,पर ता को निज मान।
लघुता की बेड़ी नही, प्रभुता को दिव मान।
13.
बेटी सोना पालकी ,चाँदी की पतवार।
दोनी कुटमाँ तारती,जग भवसागर पार।
14.
बेटी गीता पाठ है, रामायण र कुरान।
बाईबिल की शान है, महाभारती आन।
15.
बेटी नदिया तीर पर,नौका विहग विमान।
दो पाटों को पाट दे, ऐसा सेतु महान।
16.
बेटी देश विदेश में , यादें अर् अरमान।
निजतापरतामें पले,तजनिजमिथअभिमान।
17.
बेटी घर की सौम्यता,सुख संपत को रूप ।
परिवर्तन की लहर ज्यूँ ,करै रंकपति भूप।
18.
बेटी ,पत्नी मात सब, एकै सत्य सब धारि।
रचनाधारा ब्रह्म सी, शिव सी गरलाधार।
19.
बेटी सिय सी त्याग मयि, राधा रूप अरूप।
पांचाली सी जिद बड़ी, यसुदा की प्रतिरूप।
20.
बेटी जनमन कामना, परणावन आधार।
मात रूप सेवा जतन, भली करै करतार।
21.
बेटी बरगद छाँव सी, शीतल मंद बयार।
विंध्याचल सी थिर रहे,गंगा कलकल धार।
22.
बेटी नभ की बादल़ी, बरषा बूंद बहार।
आपा तजतीओसकण,जगकी सिरजन हार।
23.
बेटी कुल की जनमनी,कुल की पालनहार।
सत सज्जन संतान की, नौका तारन हार।
24.
बेटी व्रत त्यौहार की, सामाजिक सद्भाव।
कुटुम पड़ोसी जोड़ती,श्रद्धा भक्ति सुभाव।
25.
बेटी तप आराधना , श्रद्धा जप उपवास।
दानधर्म सतकर्मफल,तनमनवच विशवास।
26.
बेटी सविता रश्मि है, धरती को सिणगार।
जन गण मन का गीत ज्यूँ,भारतीय सत्कार।
27.
बेटी रक्षा सूत्र है, रोल़ी मोल़ी डोर।
संध्या वंदन आरती,प्रात नमन् शुभ भोर।
28.
बेटी सुर संगीत है ,नृत्य गीत गम्भीर।
सरगमसाज पुनीत शुभ,लयपरवाजसुधीर।
29.
बेटी पावस तीज है,सावण झूला डोर।
इन्द्रधनूषी साँझिया,भादौ राखी डोर।
30.
बेटी षटरितु लाड़ली, शीत घाम बरसात।
हेमंती दिवसाँ शिशिर ,बासन्ती परभात।
31.
बेट़ी खग हारिल बणै, सेवै दोनी धाम।
इक पग तै ससुराल रम,दूजै पीहर पाम।
32.
बेटी गीता सार है, कर्म योग प्रतिमान।
ग्यान,धर्म मर्याद सत,रामायण सनमान।
33.
बेटी वेद,पुराण सब,सुफल मंत्र को सार।
ममता की मूरत सुघड़,भली रची करतार।
34.
बेटी यसुदा मात है, कौशल्या सो नेम।
रानी लक्ष्मी बाई सो,जनमभौम रो प्रेम।
35.
बेटी सब न्यौछारती, देश धरम हित मान।
पती पूत भ्राता करै, जनम जनम बलिदान।
36.
बेटी विष्णू संगिनी, कामधेनु सी गाय।
सागरमंथन ऊपजी,पुण्य धरा पर आय।
37.
बेटी तीरथ धाम सब ,मंदिर मठ ,दरगाह।
काशी काबा द्वारिका,कौशल,पुरि,नरनाह।
38.
बेटी जिण घर नीपजै, प्रेम पुन्य,सतकाम।
इण बिन जीवन निरर्थक ,मनोविधाता बाम।
39.
बेटी जिण घर बासती, सत्य, अहिंसा, प्रीत।
इणबिन दर नहि ऊजल़ै,भरतखण्ड युग रीत।
40.
बेटी जन्म मिनखां मै, पुण्य कर्म रो हेतु।
लख चौरासी जीव में,सत चित आनँद सेतु।
41.
बेटी भोजन भक्ति सी,परमात्मन् को भोग।
सत्य सनातन आरती ,पावन शुभ संजोग।।
42.
बेटी जिन शिक्षा दई ,वै शिक्षक,पितुमात।
जनम सुधारै आपरो, दुई घराँ परभात।
43.
बेटी को शिक्षित करो,लाड प्यार, मनवार।
भवसागर नैय्या फँसत, जीवन की पतवार।
44.
बेटी शिक्षा ले रही ,ग्यान मान संस्कार।
अपने हकों हकूक की,हुइ चेतन दरकार।
45.
बेटी जन्मत जागताँ, सनातनी संस्कार।
बिनसंस्कारा मिनख ज्यूँ,फसलाँ खरपतवार।
46.
बेटी जीवन जीवणों, सद गुण सद् आचार।
खाणपीण अर सोवणो ,पशु वा मिनखाचार।
47.
बेटी गुण की पोटल़ी ,मिनखा री पहचाण।
बेगुण औगुण गुण तमों,पशु जीवन परमाण।
48.
बेटी मन धीरज बड़ो,सत मित मंगल काम।
इण खोया संसार में, मनो विधाता बाम।
49.
बेटी धीरज धारणी, जद जामै परिवार।
हाथ न सरसों ऊपजै,बीज,धरा कुलसार।
50.
बेटी जग जीणो कठिन,तज,आपा अभिमान।
इक तज दूजे साधते,,आन मान अरमान।
51.
बेटी आपा त्याग कर,बणै बीज दरखत्त।
बिन छीजै सागर नदी, क्यों बरषै अमृत्त।
52.
बेटी निज ते पर बड़ी, परता हित निज अंत।
दरखत पतझड़ के बिना,क्योंकर रचै बसन्त।
53.
बेटी दीपक बाति सी ,दीवाली उजियास।
जबलगि घीरतपूरता,तबलगि जरत प्रकाश।
54.
बेटी जग मग चाँदनी,शीत काल सी धूप।
सबको नेह दुलारती ,त्याग प्रेम प्रतिरूप।
55.
बेटी विद्या दान है, बेटी कन्या दान।
मायड़ को सम्मान या,बाबुल को अरमान।
56.
बेटी रतन अमोल है , सृष्टि चराचर देखि।
त्यागमानअनुराग मयि,बणीअलौकिक पेखि।
57.
बेटी कवि की लेखनी, शूरातन हथियार।
श्रेष्ठिजनों की लिच्छ्मी,सृष्टि धराआधार।
58.
बेटी धुरी विकास की,कुल की खेवनहार।
देश धर्म मर्याद की, साँची पालन हार।
59.
बेटी हाड़ी राणि ज्यूँ, चूड़ावत सिणगार।
ममतज पन्ना धाय सी,इन्दिरा ज्युँ ललकार।
60.
बेटी कुमकुम आरती, चन्दन पुष्पम माल्य।
धूप दीप नैवेद्य जल,जप तप पूजन थाल्य।
61.
बेटी जीजा बाइ ज्यूँ, त्यार करै शिवराज।
मात्रभूमि हित जे बणै,छत्रपती महाराज।
62.
बेटी शबरी भिल्ल ज्यूँ,सत,पत को उपदेश।
बेर खाय दरशन मतै, प्रभु बन वासी भेष।
63.
बेटी अत्रीय पत्नि सी,तप मूरत लवलेश।
सत मारग सतकर्म का,सीता कूँ उपदेश।
64.
बेटी सावितरी हुई, जग में एक अनूप ।
पति की जीवन रक्ष हित,अड़ी रही यमभूप।
65.
बेटी खेजड़ली चिपक, रची अमृता रीत।
वन रक्षा,पशु पक्षि अर्, प्राणी प्रकृति प्रीत।
66.
बेटी रण रजपूत री, पद्मनियाँ चित्तौड़।
जौहर मै कूदै सदा,राज प्राण सब छोड़।
67.
बेटी मीराँ बाइ जी, हरि भक्ती लवलीन।
राज ठिकाना देहसुख,तज वृन्दावन लीन।
68.
बेटी सुर संगीत की, लता बढ़ी शुभ नाम।
आशा धनधन भारती, सुर संगम सरनाम।
69.
बेटी पाल बछेन्दरी ,पर्वत पर चढजाय।
रची कल्पना चावला,अंतरिक्ष में जाय।
70.
बेटी सिंह सपूत जण,सांगा,राण,हमीर।
पृथ्वीराज सुवीर जन, दुर्गादास सुधीर।
71.
बेटी साँची प्रीत है, भाव भक्ति विशवास।
मदर टरेसा देश मे, दीन दुखी की आस।
72.
बेटी प्रेरक बण रचै, सुवर्ण मयि इतिहास।
चौहान सुभद्रा जियाँ,लिखै देश की साँस।
73.
बेटी इण संसार में,सागर जल ज्युँ मछली।
महादेवि वर्मा जियाँ, नीर भरि दुख बदली।
74.
बेटी रजिया सल्तनत, पहली शासक होय।
इल्तुतमिस का नामको,राजकाज सब जोय।
75.
बेटी भारत कोकिला , सुर सरोजनी शाम।
विजया लक्ष्मी पंडिता,अमरीका तक नाम।
76.
बेटी देश विदेश में , कंचन रही लुटाय।
सीता जेड़ि कुम्भ सुता,सर्प सरी लहराय।
77.
बेटी एकइ अहल्या , गौतम पत्नी सोय।
चरण परस श्री राम प्रभु, मोक्ष चराचर होय।
78,
बेटी पूजा आरती , सब काहू के होय।
शिक्षित नारी भारती,तासु विकार न सोय।
79.
बेटी गायतरी हुई , पुष्कर ब्रह्मा यज्ञ।
तीरथ पुन्य सरोवरे,भरतखण्ड नहि अज्ञ।
80.
बेटी गांधारी बनी , शत पूताँ महतारि।
आँख्याँ पाती रख रही,छाया निज भरतार।
81.
बेटी कर्मवती रची , जौहर पैली पीर।
मायड़ रक्षा कारणै, बणै हुमायू बीर।
82.
बेटी नर्मद नीर ज्यूँ , काँकर शंकर होय।
शिशु कूँ दे दे सीख अस,माणस मिनखासोय।
83.
बेटी नदियां नीर कूँ, बाँधै धीर सपूत।
नाही तो सागर मिलै, खारो पणो अकूत।
84.
बेटी शीतल पवन सी,हरै थकावट घाम।
पुरवाई का मेह ज्यूँ, फसलाँ दे आराम।
85.
बेटी सकल जहान् में, संस्कृति की आधार।
देश धर्म इंसानियत, जन गण मन एतबार।
86.
बेटी साँची हरिश्चन्द्र, तारावति न डिगाइ।
राज धर्म धन सुत सहित,सतरै पाण गँवाई।
87.
बेटी गुरु पित मात की, आज्ञा को आशीष।
राम लषन सीता हनू , त्रेता युग की सीख।
88.
बेटी तुलसीदास जी,रची कथा अनमोल।
रत्नावली की प्रेरणा,रामचरित मुखबोल।
89.
बेटी काली दास ने , लिखे संस्कृत ग्रन्थ।
निज पत्नी अभिलाषते,माणस जेड़ो पंथ।
90.
बेटी निज मन व्यथा को,खुद ही कर उपचार।
भीतर बाहिर झाँक मन, आपू आप विचार।
91.
बेटी ईद दिपावली , तीज और गणगौर।
सबसूँ हिलमिल रैवणो, होली राखी डोर।
92.
बेटी हजरत महल सी, चेनम्मा सी होय।
देश धर्म मरजाद हित,जीवन बाती खोय।
93.
बेटी निज दुख ताड़ना, मती बणाजे ताड़।
अपने घर की लिच्छमी, सबका हेतू ताड़।
94.
बेटी बिन कर्तव्य के, मिलै कठै अधिकार।
त्याग, कर्म,तप साधना, संघर्षण कर तार।
95.
बेटी मिथ अभिमान नै, तजो हेतु परिवार।
स्वाभिमान निज राखणो,तब चालै घरबार।
96.
बेटी बरगद काट कर , रोपै पेड़ विदेषि।
सोचसमझअविवेकतज,हानिलाभ निज देषि।
97.
बेटी निजघर खाकको,करो आनितुम लाख।
चाहो तो सौ लाख लख,चाहो तो सो लाख।
98.
बेटी निज घर की विथा, करो न विथा प्रचार।
निजदुखसुख निज झेलणो,हाँसी पर परचार।
99.
बेटी निज घर राख को, तो भी सुरग समान।
पर घरसुख नहि ताकणो,लंका स्वर्ण अमान।
100.
बेटी नित सादर रहै,सब घर सब परिजान।
झूठाँ सुपना भूल कर, कर्म गीत परमान्।
“इति श्री बेटी दोहा शतक” .
नाम- बाबू लाल शर्मा
साहित्यिक उपनाम- बौहरा
जन्म स्थान – सिकन्दरा, दौसा(राज.)
वर्तमान पता- सिकन्दरा, दौसा (राज.)
राज्य- राजस्थान
शिक्षा-M.A, B.ED.
कार्यक्षेत्र- व.अध्यापक,राजकीय सेवा
सामाजिक क्षेत्र- बेटी बचाओ ..बेटी पढाओ अभियान,सामाजिक सुधार
लेखन विधा -कविता, कहानी,उपन्यास,दोहे
सम्मान-शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र मे पुरस्कृत
अन्य उपलब्धियाँ- स्वैच्छिक.. बेटी बचाओ.. बेटी पढाओ अभियान
लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः