हे शैलपुत्री! हे ब्रह्मचारिणी!
माँ चंद्रघण्टे ! माँ कुष्मांडा!
हे स्कन्दमाता! हे माँ कात्यायनी!
हे कालरात्रि माँ! माँ महागौरी!
माँ सिद्धिदात्री! माँ, तुम हो दुर्गे।
तुम तपस्विनी, तुम विष्णुमाया,
तुम भव्या, तुम बहुल प्रिया।
चंडमुंड, खड़ग, खप्पर धारिणी,
अष्ट भुज कल्याणकारिणी।
तुम भवप्रिता, तुम भवमोचिनी,
तुम बगलामुखी, तुम दक्ष कन्या।
तुम चामुंडा, तुम लक्ष्मी हो,
हो तुम मात हमारी वैष्णवी।
तुम सावित्री, तुम बलप्रदा,
तुम महिषासुरमर्दनी, तुम ज्वाला।
तुम नारायणी, तुम भद्रकाली,
तुम ही तो हो माँ परमेश्वरी।
चौसठ जोगिनी साथ तुम्हारे,
तुम करती भक्तन रखवाली।
भैरव करते नृत्य भुवन में,
जहाँ बिराजे शिव त्रिपुरारी।
हे कृपासिन्धु! माँ भगवती दुर्गे,
सुनो हमारे अनुनय–विनय को।
जीवन चरणों में करते अर्पण,
स्वीकार करो तुम हम भक्तन को।
करना हम पर कृपा हे माँ!
रहना सदा हमारे साथ,
हम अबोध जग जाने न कोई,
बच्चों पर रखना ममता का हाथ।
माँ! तुम रखना ममता का हाथ..
डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
राष्ट्रीय अध्यक्ष, मातृभाषा उन्नयन संस्थान, भारत