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मेरी मोहब्बत में कोई राज़ नहीं
ये तो पाक़ीज़ा अहसास है ।
मेरे लब हैं अभी तक ख़ुश्क,
बुझती नहीं वो प्यास है ।।
तेरे पाक़ दामन से बंधकर,
रिश्ता जोड़ना चाहता हूं ।
रूख़ मोहब्बत का तेरी, अब
मैं इधर मोड़ना चाहता हूं।।
दिल मेरा खंडहर बन गया,
तेरी यादों के बुत ढहने लगे ।
जज़्बात की आग बुझने लगी
अब लोग दीवाना कहने लगे ।।
ये आशिक़ी, ये मौसिक़ी,
सब बेकार की बातें हैं ।
जिनके नसीब में नहीं सहर प्यार की,
ये वो गुमनाम रातें हैं ।।।।
#डॉ.वासीफ काजी
परिचय : इंदौर में इकबाल कालोनी में निवासरत डॉ. वासीफ पिता स्व.बदरुद्दीन काजी ने हिन्दी में स्नातकोत्तर किया है,साथ ही आपकी हिंदी काव्य एवं कहानी की वर्त्तमान सिनेमा में प्रासंगिकता विषय में शोध कार्य (पी.एच.डी.) पूर्ण किया है | और अँग्रेजी साहित्य में भी एमए कियाहुआ है। आप वर्तमान में कालेज में बतौर व्याख्याता कार्यरत हैं। आप स्वतंत्र लेखन के ज़रिए निरंतर सक्रिय हैं।
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