ज़ख़्म

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कोई भी ज़ख़्म दिल को खटकता नहीं है अब ।
आँसू भी चश्म में मेरे चुभता नहीं है अब ।
इस हद अकेला हो गया मैं कि पूछ मत ।
साया भी मेरा साथ में चलता नहीं है अब ।
इन मौसमों में पहले सी वो बात भी नहीं ।
झौंका हवा का कोई उलझता नहीं है अब ।
आँखों में मेरी लिख गया है रेगज़ार कौन ।
ये गुलशन ए हयात महकता नहीं है अब ।
बारिश है जाने किसकी महब्बत में मुब्तला ।
बादल गुज़रता तो है ,बरसता नहीं है अब ।
#डॉ अशोक गोयल ,गुना 

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