पिछले चार दशक से इंग्लैंड में बसे हुए भूपेंद्र मामाजी जो मूलतः बनारस के हैं,हर नाते-रिश्तेदार की शादियों में शरीक हुए हैं। हर रस्मों-रिवाज़ों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है और वर- वधू को पांच-छह सौ पौंड का चेक देकर गए हैं जो रुपए में बदलकर नवीन जोड़ी के लिए एक हनीमून का इंतज़ाम तो कर ही गया है। बस पंजाबी मामी को हर वख्त डर रहता है कि,कोई अलग से कुछ मांग न कर बैठे,इसलिए हमेशा साथ ही रहती हैं।सुनते हैं इतनी तो वो वहां के बेरों को टिप दे देते हैं। जैसे यहाँ घनश्याम ‘घंशु’ और गोवर्धन ‘गोबर’ हो जाता है,वैसे ही उनका बड़ा बेटा संजय ‘संजू’,फिर ‘सेन’ हो गया और छोटा निखिल ‘निक’ हो गया। अच्छी बात ये है कि,वहां बेटे माँ-बाप की धन संपत्ति में कोई रूचि नहीं रखते हैं।मामीजी गर्व से बताती थी कि,संजू बोलता है कि,’मेरे पापा अरबपति हैं,मैं मल्टी मिलिअनर बनूँगा।’ वो भी बड़ा डॉक्टर बन गया है,वहीं की एक लड़की क्रिस्टीन से शादी कर ली है और तीन बच्चे भी हैं। यहाँ-वहां के अंतर में मैनरिज्म यानि शिष्टाचार उनकी बातों में प्रमुखता से उभरकर आता था। यहाँ जैसे बच्चों को चिल्लाकर बुला सकते हैं और थोड़ी देर हो जाने पर ‘कहाँ मर गया था’ भी बोल सकते हैं,वहां ऐसा नहीं होता। दबे पाँव बच्चों के कमरे का दरवाज़ा नॉक कर के पूछना पड़ता है-‘मे आई कम इन बेटा।’अब मामीजी को शिकायत है कि,उनकी अंग्रेज़ बहू उन्हें मिसेस शर्मा कहकर बुलाती है। वो कुलबुला कर कहती हैं-‘देखना एक न एक दिन मॉम तो बुलवाकर रहूंगी।’ बेबी पूछती है-मामीजी वो लोग आपको अपने घर बुलाते हैं?
मामीजी ठंडी आह भरकर बोलती हैं- ‘हाँ बुलाते हैं,जब भी बेबी सिटिंग करवानी होती है,लेकिन उसका भी टाइम फिक्स्ड होता है। एक बार बच्चों के मोह में समय से पहले पहुँच गए थे तो संजू ने नाराज़ होकर कहा था-डोंट यू हेव ए मैनर्स।’
#कपिल शास्त्री
परिचय : 2004 से वर्तमान तक मेडिकल के व्यापारी कपिल शास्त्री भोपाल में बसे हुए हैं। आपका जन्म 1965 में भोपाल में ही हुआ है। बीएससी और एमएससी(एप्लाइड जियोलॉजी) की शिक्षा हासिल कर चुके श्री शास्त्री लेखन विधा में लघुकथा का शौक रखते हैं। प्रकाशित कृतियों में लघुकथा संकलन ‘बूँद -बूँद सागर’ सहित ४ लघुकथाएँ-इन्द्रधनुष,ठेला, बंद,रक्षा,कवर हैं। द्वितीय लघुकथा भी प्रकाशित हो गया है। लघुकथा के रुप में आपकी अनेक रचनाएँ प्रकाशित होती हैं।
बेहतरीन पेशकश